24 जन॰ 2012

कश्मीरी पंडितों को ओमर साहब का न्यौता ज़ख्म पे नमक

       ज़नाब ओमर अब्दुल्लाह ने पंडितों को ट्विटर के ज़रिये वापस बुला के भारतीय होने के रस्म अदा तो कर दी पर क्या वे उनके दिलों में यक़ीन के बीज बो पाएंगें..यक़ीन नहीं होता कि देश का स्वर्ग अदावत के शिकंजे में कुछ इस कदर जक़ड़ दिया जाएगा कि लोगों के दिल उस ऊसरी ज़मीन की मानिंद हो जाएंगे कि कोई भी यक़ीन का बीज रोपे क़तई उसमें अंकुरण सम्भव नहीं. वैसे भी अगर सी एम साहेब के दिल में इतनी पावन गंगा बह रही है कि वे कश्मीरी पंडितों के बग़ैर रह नहीं पा रहे तो क्या वज़ह थी कि इतनी सी बात कह देने में 19/01/1990  के बाद इतना विलम्ब क्यों हुआ. उनको  शायद ही एहसास है कि कितने दिल तार तार हुए है इनके दिल. एक चैनल पर जब अपने ही देश में घर से बेदखल किये गये ये लोग कितने हताश हैं शायद इसका ज़वाब विश्व की सबसे महान बड़ी कही और समझी जाने वाली जम्हूरियत का हर एक इंसान चाहता है.. जवाब  ज़वाब की उम्मीद गोया बेमानी है. वैसे ज़नाब आपने न्योता नहीं उनके दिलों पे नमक छिड़का है. 
                 वैसे आपका ये अंदाज़ वाक़ई निराला ही माना जाएगा. कि हज़ूर आपने ट्विटर के ज़रिये बुलाया हम समझ रहे थे कि आप......... खैर छोड़िए ये सुनिये 
"जब मज़लूम आह भरते हैं 
ज़ालिमों को तबाह करतें हैं
अपने मक़सद से ये महल वाले 
झोपड़ी पर निग़ाह करतें हैं..!!"

3 टिप्‍पणियां:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!