2 जन॰ 2013

भज गोविन्दम् (मूल संस्कृत, हिन्दी काव्यानुवाद, अर्थ व अंग्रेजी अनुवाद सहित) मूल रचना: जगद्गुरु आदिशंकराचार्य अनुवाद: संजीव वर्मा 'सलिल'


भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते। 
संप्राप्ते सन्निहिते काले, न हि न हि रक्षति डुकृञ् करणे ॥१॥ 

गोविंद भजो, गोविंद भजो, गोविंद भजो रे मूरख मन। 
अंतिम पल में रक्षा न करेगा, केवल यह व्याकरण रटन॥१॥ 

हे मोह से ग्रसित बुद्धि वाले मित्र! गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो क्योंकि मृत्यु के समय व्याकरण के नियम याद रखने से आपकी रक्षा नहीं हो सकती है ॥१॥ 

O deluded minded friend, chant Govinda, worship Govinda, love Govinda as memorizing the rules of grammar cannot save one at the time of death. ॥1॥ 

मूढ़ जहीहि धनागमतृष्णाम्, कुरु सद्बुद्धिमं मनसि वितृष्णाम्। 
यल्लभसे निजकर्मोपात्तम्, वित्तं तेन विनोदय चित्तं ॥२॥ 

धन-अर्जन की तृष्णा तज, सद्बुद्धि रखो वासना तजो। 
सत्कर्म उपार्जित धन-प्रयोग दे, सदा चित्त को आनंदन॥२॥ 

हे मोहित बुद्धि! धन एकत्र करने के लोभ को त्यागो। अपने मन से इन समस्त कामनाओं का त्याग करो। सत्यता के पथ का अनुसरण करो, अपने परिश्रम से जो धन प्राप्त हो उससे ही अपने मन को प्रसन्न रखो ॥२॥ 

O deluded minded ! Give up your lust to amass wealth. Give up such desires from your mind and take up the path of righteousness. Keep your mind happy with the money which comes as the result of your hard work. ॥2॥ 

नारीस्तनभरनाभीदेशम्, दृष्ट्वा मागा मोहावेशम्। 
एतन्मान्सवसादिविकारम्, मनसि विचिन्तय वारं वारम् ॥३॥ 

नाभि-वक्ष सौंदर्य देखकर, मत मतवाला हो नारी का। 
अस्थि, मांस, मज्जा, मेदा है, अशुचि मोह का कर भंजन॥३॥ 

स्त्री शरीर पर मोहित होकर आसक्त मत हो। अपने मन में निरंतर स्मरण करो कि ये मांस-वसा आदि के विकार के अतिरिक्त कुछ और नहीं हैं ॥३॥ 

Do not get attracted on seeing the parts of woman's anatomy under the influence of delusion, as these are made up of skin, flesh and similar substances. Deliberate on this again and again in your mind॥3॥ 

नलिनीदलगतजलमतितरलम्, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्। 
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं, लोक शोकहतं च समस्तम् ॥४॥ 

कमल-पाँखुरी पर क्रीड़ारत, सलिल-बिंदुवत चंचल मति-यश। 
रोग, अहं, अभिमानग्रस्त है, सकल विश्व यह समझ अकिंचन॥४॥ 

जीवन कमल-पत्र पर पड़ी हुई पानी की बूंदों के समान अनिश्चित एवं अल्प (क्षणभंगुर) है। यह समझ लो कि समस्त विश्व रोग, अहंकार और दु:ख में डूबा हुआ है ॥४॥ 

Life is as ephemeral as water drops on a lotus leaf . Be aware that the whole world is troubled by disease, ego and grief. ॥4॥ 

यावद्वित्तोपार्जनसक्त:, तावन्निजपरिवारो रक्तः। 
पश्चाज्जीवति जर्जरदेहे, वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे ॥५॥ 

धन-अर्जन-संचय की जब तक, शक्ति तभी तक आश्रित चिपके। 
कोई न चाहे बातें करना, निर्बल-जर्जर जब होगा तन॥५॥ 

जब तक व्यक्ति धनोपार्जन में समर्थ है, तब तक परिवार में सभी उसके प्रति स्नेह प्रदर्शित करते हैं परन्तु अशक्त हो जाने पर उसे सामान्य बातचीत में भी नहीं पूछा जाता है ॥५॥ 

As long as a man is fit and capable to earn money, everyone in the family show affection towards him. But after wards, when the body becomes weak no one enquires about him even during the talks. ॥5॥ 

यावत्पवनो निवसति देहे, तावत् पृच्छति कुशलं गेहे। 
गतवति वायौ देहापाये, भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये ॥६॥ 

इस नश्वर शरीर में जब तक, प्राण तभी तक लोग पूछते। 
प्राण शरीर छोड़ता, डरती अर्धांगिनी तक लख विकृत तन॥६॥ 

जब तक शरीर में प्राण रहते हैं तब तक ही लोग कुशल पूछते हैं। शरीर से प्राण वायु के निकलते ही पत्नी भी उस शरीर से डरती है ॥६॥ 

Till one is alive, family members enquire kindly about his welfare. But when the vital air (Prana) departs from the body, even the wife fears from the corpse.॥6॥ 

बालस्तावत् क्रीडासक्तः, तरुणस्तावत् तरुणीसक्तः। 
वृद्धस्तावच्चिन्तासक्तः, परे ब्रह्मणि कोऽपि न सक्तः ॥७॥ 

बालक-मन आसक्त खेल में, तरुण-युवा मन हो रमणी में। 
चिंतासक्त वृद्ध-मन होता, हो न ब्रम्ह में लीन कभी मन.॥७॥ 

बचपन में खेल में रूचि होती है , युवावस्था में युवा स्त्री के प्रति आकर्षण होता है, वृद्धावस्था में चिंताओं से घिरे रहते हैं पर प्रभु से कोई प्रेम नहीं करता है ॥७॥ 

In childhood we are attached to sports, in youth, we are attached to woman . Old age goes in worrying

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!