16 अप्रैल 2022

हिन्दी में ग़ज़ल

 


पारिस्थितिकी  

चक्षु पे तमस उनके,भयातुर आराधना है।

चिर प्रतीक्षित युद्ध की, सन्निकट संभावना है !!

वेदना- स्वर भी, हर  दिशा से आ रहें हैं  

जागरण के द्वार पर सनातन संचेतना है ।।

छत से प्रस्तर झर रहे,आग से झुलसे नगर-

ये हलाहल युक्त पल ही, युद्ध की प्रस्तावना है ।।

मत मेरा ही श्रेष्ठतम है, मुझे मानों मुझे मानो

ब्रह्म की सुन मीत मेरे .. ये ही अवमानना है ।।

नेति-नेति कहके हम ही, सत्य को विस्तार देते   

वहाँ उनकी एक बिंदु पर रुकी, अवधारणा है ।।

हम तो हैं अरिहंत ठहरे,कितनी भी कोशिश करो –

ब्रह्म के अवतरण की अब सुनिश्चित संभावना है ।।

गिरीश बिल्लोरे”मुकुल”  

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!