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5 अक्टू॰ 2011

बेटी बचाओ अभियान :विधान सभा अध्यक्ष श्री रोहाणी ने चेतना रथ रवाना किया विधायक शरद जैन ने केंद्रीय कारागार जाकर बंदिनियों की बेटियों के पैर पूजे

विधानसभा अध्यक्ष श्री रोहाणी ने किया बेटी बचाओ अभियान का शुभारंभ
जबलपुर, 5 अक्टूबर, 2011

            जनसमुदाय की सक्रिय भागीदारी से चलाये जाने वाले मध्य प्रदेश शासन के “बेटी बचाओअभियान” का जबलपुर जिले में शुभारंभ विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी ने रांझी स्थित लक्ष्मीनारायण यादव उच्चतर माध्यमिक शाला प्रांगण में भव्य और गरिमामय समारोह में किया   उन्होंनेबेटियों के लिए सम्मान की भावना बढ़ाने के लिये जागरूकता हेतु भारतीय परम्परा के अनुरूप कन्याओं कापूजन किया   पैर पखारेतिलक लगाया और चरणों में पुष्प अर्पित किये   श्री रोहाणी ने कन्याओं कोभोजन परोसा और उनके साथ भोजन ग्रहण किया  दो हजार से अधिक कन्याओं का पूजन कर उन्हेंभोजन कराया गया   बेटी बचाओ अभियान को जन-जन का अभियान बनाने के लिए श्री रोहाणी ने “चेतनारथको हरी झण्डी दिखाकर संभाग के जिलों के भ्रमण के लिए रवाना किया विधानसभा अध्यक्ष श्री रोहाणी ने इस अवसर पर कहा कि बेटियों की संख्या में कमी आने कामुख्य कारण दहेज प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियां हैं   इस सामाजिक बुराई का कद अब रावण से भी बड़ाहो गया है  जिस प्रकार रावण दहन होता है उसी प्रकार इन कुरीतियों को भी जड़मूल से समाप्त करना होगा
            श्री रोहाणी ने कहा कि स्त्री-पुरूष लिंगानुपात में असंतुलन होने पर भारी अराजकता फैलेगी उन्होंने कहा बेटा-बेटी के मध्य भेदभाव समाप्त होना चाहिये  श्री रोहाणी ने कहा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कीसरकार ने बेटियों का सम्मान बढ़ाने के लिये उनकी शिक्षास्वरोजगारविवाहप्रसव आदि की सहूलियतके लिए अनेक योजनाओं का सफल क्रियान्वयन .प्रमें सुनिश्चित किया है   ये ऐसी योजनायें हैजिसकी सराहना सम्पूर्ण देश में हुयी है और कई प्रदेशों ने इन योजनाओं को अपने यहां शुरू भी किया है  मध्य प्रदेश में शुरू हुआ बेटी बचाओ अभियान देश में अपने तरह का अकेलाअनूठा और अभिनवअभियान है   ये योजनायेंदहेज दानव जैसी सामाजिक-आर्थिक कुरीतियों-विषमताओं को चुनौती देने मेंपूरी तरह से सक्षम है 
            श्री रोहाणी ने आव्हान किया कि बेटी बचाओ अभियन में प्रत्येक परिवार और व्यक्ति शामिलहोकर बेटियों की लगातार कम हो रही संख्या के प्रति समाज को जागरूक करें 
बेटी बचाओ संकल्प का वाचन:
            विधानसभा अध्यक्ष श्री रोहाणी ने समारोह में मौजूद लोगों को संकल्प दिलाया कि बेटी के जन्मको कभी भी बाधित नहीं किया जायेगा   किसी भी स्तर पर बेटा-बेटी के बीच भेदभाव नहीं किया जायेगा 
पोस्टर का विमोचन:
            संयुक्त संचालक महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा बेटी बचाओ अभियान पर केन्द्रित पोस्टरका विमोचन विधानसभा अध्यक्ष श्री रोहाणी ने किया   इसे छायाचित्रकारकलाकार विनय अम्बर ने तैयारकिया है 
चेतना रथ रवाना:
            बेटी बचाओ अभियान में जनसमुदाय की सक्रिय भागीदारी बढ़ाने के लिये विधानसभा अध्यक्ष श्रीरोहाणी ने “चेतना रथ” को हरी झण्डी दिखाकर रवाना किया।
            संयुक्त संचालक कार्यालय महिला एवं बाल विकास विभाग के तत्वावधान में एनेक्स मीडिया द्वारा तैयार किये गये इस आकर्षक चेतना रथ में चारों ओर पोस्टर लगाकर बेटी बचाओ अभियान का संदेशनारों और गीतों आदि के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया गया है  इस वीडियो-आडियो चेतना रथ मेंछोटी-छोटी फिलमों के द्वारा बेटियों एवं महिलाओं के लिये मध्य प्रदेश शासन की योजनाओं को प्रदर्शितकिया जायेगा 
लाड़ली लक्ष्मी योजना से लाभान्वित किया गया:
            लाड़ली लक्ष्मी योजना के बचतपत्रलाड़ली लक्ष्मी बालिकाओं को विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदासरोहाणी ने वितरित किये 
जनप्रतिनिधियों से मिला सहयोग:
            बेटी बचाओ अभियान के अन्तर्गत प्रत्येक विधानसभा क्षेत्रों में विधायक गणोंपार्षदपंच,संरपंच आदि जनप्रतिनिधियों और गणमान्य नागरिकों ने समारोहपूर्वक बेटियों का पूजन कर उनकासम्मान किया   बेटियों के अभिभावकों का सम्मान किया गया 
            समारोह में बेटी बचाओ अभियान से संबंधित एक संस्था एम.पी.वी.एच.के नोडल अधिकारीमनीष पाण्डे ने “बदलेंगे सोच बेटी नहीं बोझ” संदेश देता बैच सभी अतिथियों को लगाया   मंच संचालन सहायक संचालक महिला एवं बाल विकास गिरीश बिल्लौरेविभाग गिरीश ने किया 
            इस अवसर पर नगर निगम अध्यक्ष राजेश मिश्राजबलपुर विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष प्रभाशंकर कुशवाहासर्वेश मिश्रासावित्री कुंजामकौशल्या घाघरेजगदीश यादवप्रवीण यादवराजेश भाटियातृष्णा चटर्जीरमेश सोलकियासंयुक्त संचालक महिला बाल विकास एस.सीचौबे, संयुक्त संचालक महिला एवं बाल विकास प्राचार्य दिनेश अवस्थीजिला कार्यक्रम अधिकारी श्री एच के शर्मा विभिन्नविभागों के अधिकारी-कर्मचारी तथा करीब 2000 से अधिक कन्यायें और जनप्रतिनिधि एवं गणमान्य नागरिकगण मौजूद थे 





बंदनीयों की बेटीयों के पांव-पूजे गये
एक संवेदनात्मक पहल हुई
विधायक शरद की ओर से 
जबलपुर की मध्य विधान सभा के विधायक
श्री शरद जैन महारानी लक्ष्मी बाई कन्या शाला
जबलपुर में बेटियों के पैर पूजे  

26 सित॰ 2011

बेटी बचाओ अभियान :डा. विजय तिवारी "किसलय" का आलेख


बेटी बचाओ अभियान
                    कन्या भ्रूण ह्त्या निश्चित तौर पर एक जघन्य सामाजिक बुराई है.  सरकारी एवं गैर  सरकारी संस्थाओं, संगठनों, आम तथा खास सभी को भ्रूण ह्त्या पता लगाने एवं रोकने हेतु प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है. समाज में महिलाओं  के  प्रति  नकारात्मक सामाजिक सोच के फलस्वरूप ही बेटियों में शिक्षा का वांक्षित स्तर नहीं बढ़ सका है. दहेजप्रथा कन्या भ्रूण ह्त्या का मूल कारक माना जा सकता है. इसके विरुद्ध कठोर एवं प्रभावी कानून बनाए जाने की आवश्यकता है. माता-पिता की बेटियों के प्रति असुरक्षा की भावना भी एक कारण है जिसके तहत बेटी का घर से बाहर निकालनाविद्यालयों
में आये दिन अश्लील हरकतें प्रकाश में आनाअस्पतालों में चिकित्सकों से डरसडकोंपर दोपाये  जानवरों की कुत्सित भावनाएँ,सरकारी एवं गैर सरकारी कार्य के दौरान अभिभावकों  में शंका- कुशंकाओं को जन्म देता है.
आज लक्ष्मी, मैत्रेयी, गार्गी, महादेवी जैसी विलक्षण महिलाओं के देश में बेटियों का पैदा होना चिंता का विषय बन जाता है जबकि हमें स्वयं को गर्वित होना चाहिए कि बेटों से ज्यादा माँ-बाप से भावनात्मक रूप से बेटियाँ ही जुड़ी होती हैं. घर एवं समाज में बेटियों की अहमियत से सभी भलीभाँति परिचित हैं. आज के बदलते परिवेश में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि बेटियों का सुनहरा भविष्य उनकी प्रतीक्षा कर रहा है. बेटा-बेटी में फर्क करने से सबसे पहले ममतामयी माँ का हृदय ही आहत होता है. ऐसे समय में माँ की दृढता, आत्मविश्वास एवं जवाबदेही और बढ़ जाती है. उसे समाज, परिवार और स्वयं पर भी जीत हासिल करना होगी. जब बेटियों को समाज और शासन आगे बढ़ने का मौका देने लगा है तब यह भेद कैसा? यह तो सृष्टि से बगावत ही कहा जाएगा. आज हमें स्वीकारना ही होगा कि कन्या भ्रूण हत्या, बेटों की चाह के अलावा और कुछ भी नहीं है जिसे पुरुष प्रधान समाज में बड़ी अहमियत के तौर पर देखा जाता है तथा बेटियों के विषय में हीन भावना के परिणाम स्वरूप कन्या भ्रूण हत्या की जाती है. यह तय है कि पुरुष प्रधान समाज में इस भावना की जड़ें अभी तक जमी हुई हैं.
यूनिसेफ के अनुसार भारत में लगभग ५ करोड़ बेटियाँ एवं स्त्रियाँ गायब हैं. विश्व के अधिकतर देशों से तुलना की जाये तो भारत में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या कम होती जा रही है. संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार भारत में अनुमानतः प्रतिदिन २००० हजार कन्या भ्रूण हत्याएँ अवैध रूप से होती हैं जिससे बाल अत्याचार, विवाहेत्तर यौन सम्बन्ध तथा यौनजनित हिंसा को बढ़ावा मिला है. यह एक विकासशील राष्ट्र के लिए बुरा संकेत है.२०११ की जनगणना में सामने आये आँकड़ों में कम शिशु लिंगानुपात ने देश की चिंता बढ़ा दी है. ऐसे में इस समस्या के निराकरण हेतु विशेष कार्ययोजना की आवश्यकता प्रतीत होती है.
जिस देश का इतिहास स्त्रियों की सेवा-भावना, त्याग और ममता से भरा पड़ा हो वहाँ अब उसी के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाना पुरुषों के लिए लज्जा की बात है. हीन विचारधारा एवं रूढ़िवादी प्रथाओं के कम होने पर भी कन्या भ्रूण ह्त्या का प्रतिशत बढ़ना हमारे समाज के लिए घातक हो सकता है. वंश परम्परा का प्रतिनिधित्व, बुढापे में सहारा की निश्चिन्तता एवं आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए परिवार में बेटों को प्रधानता दी जाती है. इसी सोच ने धीरे धीरे अपनी जड़ें मजबूत कर ली हैं
अब शिक्षा के सुधरते स्तर से इस कुप्रथा को उखाड फेकने की संभावना बढ़ी है परन्तु यह भावना अभी ग्रामीण एवं पिछड़े वर्ग तक पहुँचना शेष है. परमात्मा यदि सृष्टि निर्माता है तो नारी संतान का निर्माण करती है, जिससे समाज का अस्तित्व जुड़ा है फिर बिना नारी के समाज का बढ़ना क्या संभव है?
वर्तमान में नारी का आत्मनिर्भर होते जाना, सकारात्मक योगदान एवं घर-बाहर सामान रूप से अपनी योग्यता का लोहा मनवाना क्या हमारे लिए प्रमाणिक तथ्य नहीं है? फिर कन्या भ्रूण ह्त्या किस मानसिकता का द्योतक है? कन्या विरोधी मानसिकता केवल अशिक्षित एवं पिछड़े वर्ग में ही बलवती नहीं है, इसकी जड़ में ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं दैविक मान्यताओं तथा रूढ़िवादी प्रथाओं का ज्यादा हस्तक्षेप समझ में आता है. हमें इन विद्रूपताओं से निपटने के लिए अब आगे आना बेहद जरूरी हो गया है. पारिवारिक कार्यों में सहभागिता, व्यवसाय-भागीदारी में विश्वसनीयता एवं उत्तराधिकार के साथ साथ बुढापे में सहारे के रूप में बेटियों की अपेक्षा बेटों को ही समाज में मान्यता प्राप्त है. लड़का घर की उन्नति में सहयोग एवं श्रीवृद्धि करता है जबकि बेटियाँ पढ़ाई-लिखाई और पालन-पोषण के खर्च के बाद भी माता पिता को दहेज के बोझ से दबा कर पराये घर चली जाती हैं. इन सबके अतिरिक्त धार्मिक कार्यों में हिन्दु प्रथाओं के अनुसार केवल बेटे ही सहभागी बन सकते हैं. आत्मा की शान्ति हेतु बेटे द्वारा ही माता पिता को मुखाग्नि देने की मान्यता है. ऐसा नहीं है कि शासन के प्रयास कम हैं, परन्तु उनके क्रियान्वयन में कहीं न कहीं कमी के चलते अपेक्षित परिणाम हमारे सामने नहीं आ पाते वहीं हमारे समाज की उदासीनता भी आड़े आती है. समाज का इस विषय पर जागरूक होना अब अत्यावश्यक हो गया है. शासन के दहेज विरोधी क़ानून, शिशु लिंग की जानकारी के विरुद्ध क़ानून, बेटी की पैतृक संपत्ति में बराबर की हिस्सेदारी के क़ानून एवं बेटियों के अधिकार के क़ानून लागू किये जाना इसके उदाहरण समाज के सामने हैं. यह मिशन तब सफल होगा जब नेता, अफसर और आम जनता में एक समन्वय स्थापित होगा.

पश्चिमी देशों के अंधानुकरण से भारत में भी अत्याचार, नारी अपमान, यौन शोषण की घटनाएँ दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं. गांधी, बुद्ध और महावीर के देश में अब आध्यात्म एवं अहिंसा ने भी किनारा कर लिया है. कन्या भ्रूण ह्त्या एक अमानवीय तथा क्रूर कृत्य है. अहिंसा-प्रधान देश में कलंक है. यह सब हमारे दिमाग से उपज कर समाज में फ़ैली कुप्रथाओं-परम्पराओं का कुपरिणाम कहा जा सकता है. हम कन्या जनित अपमान, बेबसी, दहेज, असुरक्षा जैसे कारकों से प्रभावित हो गए हैं, जो अब शिक्षित समाज से खत्म होना चाहिए. आज अत्याधुनिक तकनीक ने कन्या भ्रूण परीक्षण के उपरान्त कन्या भ्रूण ह्त्या का औसत बढ़ा दिया है. यहाँ दुःख की बात यह भी है कि वह  समाज जो नारी अस्मिता, फ़िल्मी कल्चर, ब्यूटी काम्पटीशन, खुले यौन सम्बंध,लिव-इन एवं वेलेंटाइन कल्चर का पुरजोर समर्थन करता है, वही कन्या भ्रूण ह्त्या से जुड़े सवाल पर सकारात्मक तथा कड़ा प्रतिरोध क्यों नहीं करता ?

बेटी बचाओ अभियान के सन्दर्भ में कहा जा रहा है कि प्रदेश के मुख्य मंत्री से लेकर कर्मचारी तक इस कार्यक्रम को सफल बनाने में जुट गए हैं. अब यह देखना बाकी है कि इस अभियान की रूप-रेखा, दिशा-निर्देश औए कार्यान्वयन का स्वरूप कितना कारगर बनता है. यहाँ मैं यह बताना आवश्यक समझता हूँ कि सर्वप्रथम शासकीय, अशासकीय एवं प्रदेश की जनता की सहभागिता सुनिश्चित करने हेतु भी कार्य योजना पर समग्र दृष्टिपात करना होगा.
बेटियों के सम्मान एवं भेदभाव की समाप्ति हेतु राज्य में व्यापक स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है. कन्या भ्रूण हत्या के प्रति लोगों को हतोत्साहित करना इस मिशन का मुख्य मकसद है. यह हतोत्साहसमाज में कैसे और किन किन सुविधाओं तथा क़ानून से संभव है. यह काम सरकार को प्रमुखता से करना होगा. पिछड़ी एवं गरीब जनता को सामाजिक सुरक्षा, सहायता, बेटियों की विकासपरक योजनायें कारगर हो सकती हैं. जब तक समाज कन्या को बोझ समझना बंद नहीं करेगा, तब तक इस मिशन पर अनवरत कार्य करने की आवश्यकता है.
जानकार सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि कन्या भ्रूण ह्त्या ९ प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रही है. केवल डॉक्टरों पर अंकुश लगाने से इस भ्रूण ह्त्या का ग्राफ कम होने से रहा. कन्या भ्रूण हत्या करने वाले, कराने वाले तथा प्रत्यक्ष दर्शियों पर भी नज़र रखने हेतु शासन को कठोर कदम उठाने की जरूरत है. वैसे हम यह भी कह सकते हैं कि यदि यह कुप्रथा नहीं बढ़ रही होती तो बेटी का लिंगानुपात क्यों कम होता. कन्या-क्रच, स्ट्रिंग ऑपरेशन ग्रुप रैलियाँ, कन्या दिवस, लाडली लक्ष्मी योजना या फिर विभिन्न प्रोत्साहन योजनाओं को क्यों चलाना पड़ता. इसका सीधा सा आशय है कि अभी तक हम कन्या भ्रूण ह्त्या पर वांछित अंकुश लगाने में असमर्थ रहे हैं.
भारत की २००१ की गणना में सामने आये तथ्यों में बेटियों के घटते लिंगानुपात से चिंतित होकर शासन ने इस दिशा में अपने प्रयास तेज कर दिए थे फिर भी नई नई भ्रूण परीक्षण की सुविधाओं एवं बच्चियों के प्रति उदासीनता के चलते इस अनुपात में गिरावट जारी है. अब तो मात्र ५ सप्ताह के भ्रूण का लिंग परीक्षण करने वाले अत्याधुनिक रक्त परीक्षण किट बेबी जेंडर केंडरके चलन से कन्या भ्रूण हत्या और भी आसान हो गई है. इसका उपयोग अविलम्ब प्रतिबंधित होना चाहिए.
आज जब बेटियाँ अनेक क्षेत्रों में बेटों से भी आगे निकल चुकी हैं, अब बेटा बेटी में भेदभाव समाप्त हो जाना चाहिए और माँ-बाप को निश्चिन्त होकर हर क्षेत्र में उसकी भागीदारी से सहमत होना चाहिए. बेटे के जन्म की तरह ही जब तक बेटी के जन्म पर समाज हर्षित नहीं होगा तब तक हमारे समाज का समग्र विकास संभव नहीं है. हमारे प्रधान मंत्री डॉ. सिंह ने भी कहा है कि कन्या भ्रूण ह्त्या अस्वीकार्य अपराध है जिसे व्यापक रूप से नवीन तकनीकों के दुरुपयोग से बढ़ावा दिया जा रहा है तथा जिसका विचारहीन व्यापारिक दुरुपयोग रोकना चाहिए.
हमें भी अपनी मानसिकता को बदलना होगा और याद रखना होगा कि भ्रूण में भी जीव होता है जिसकी हत्या करना हिंदू धर्मानुसार पाप माना गया है. इस पाप की सहज स्वीकृति परिवार के सारे सदस्य कैसे दे सकते हैं? अंध विश्वास, पाखण्ड एवं सामाजिक कुरीतियों को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए. समाजसेवियों, बुद्धिजीवियों एवं समाज की जागरूक जनता भी परस्पर समन्वय स्थापित करे. अभी तक बेटियों की स्थिति ज्यादा सुदृढ़ नहीं हो पाई है. आज भी पिता होने का मतलब अपना सिर झुकाना ही कहलाता है. बेटियों के विवाह में आर्थिक बोझ पड़ता ही है. कभी कभी तो विवशता में बेटी, पिता या माँ, भाई आत्महत्या तक करते पाए गए हैं.
वक्त धीरे धीरे बदल रहा है. भ्रूण हत्या के साक्षी होने पर हमें आगे आकार प्रतिरोध और कानूनी कार्यवाही में अपना सहयोग प्रदान करना चाहिए. केवल अफ़सोस भर करके चुप नहीं बैठना चाहिए. डॉक्टरों को चंद पैसों की लालच में कंस नहीं बनाना चाहिए. भ्रूण हत्या करने वाले परिवारों का समाज द्वारा बहिष्कार किया जाना चाहिए. इस लिए अब समय की यही पुकार है कि हम सब एक सचेतक की भूमिका का निर्वहन करें तभी हम इस कन्या भ्रूण ह्त्या के घिनोने कृत्य पर अंकुश लगाने में सफल होंगे. मेरे विचार से बेटी बचाओ अभियान को प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया, इंटरनेट, ब्लाग्स, नुक्कड़, नाटक, रैलियाँ, नारालेखन, पेम्पलेट्स, एस एम एस के माध्यम से व्यापक प्रचारित-प्रसारित कर सफल बनाया जा सकता है. मैं भी इस बेटी बचाओ अभियानसे जुड कर अधिक से अधिक सहभागिता प्रदान करने में अपने आप को धन्य समझूँगा. जय भारत.

- विजय तिवारी किसलय
२४१९, विसुलोक, मधुवन कालोनी,
विद्युत उप केन्द्र के आगे, उखरी रोड,
जबलपुर (म.प्र.) ४८२००२.

23 सित॰ 2011

बेटी बचाओ अभियान: पीएनडीटी एक्ट पर केन्द्रित होंगी अधिकांश गतिविधियाँ

11 अक्टूबर को मैहर से मुख्यमंत्री करेंगे बेटी बचाओ अभियान यात्रा का शुभारंभ, 
           समाज का अभियान है ‘‘बेटी बचाओ अभियान’’ - श्री चौहान

बेटियों के जन्म के प्रति मानसिकता बदलने और समाज में सकारात्मक सोच लाने के लिये प्रदेश में पाँच अक्टूबर से बेटी बचाओ अभियान की शुरूआत हो रही है। मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान अपने निवास से बेटी बचाओ अभियान की शुरूआत करेंगे। इसके साथ ही प्रति वर्ष पाँच अक्टूबर को ‘‘बेटी बचाओ दिवस’’ के रूप में मनाया जायेगा। मुख्यमंत्री ने आज यहाँ मंत्रालय में बेटी बचाओ अभियान के अंतर्गत आयोजित होने वाले कार्यक्रमों और गतिविधियों के स्वरूप पर विस्तार से चर्चा की।
श्री चौहान ने कहा कि बेटी बचाओ अभियान सिर्फ राज्य सरकार का नहीं पूरे समाज का अभियान है। समाज के प्रत्येक वर्ग को साथ लेकर इसे संचालित किया जायेगा। बेटियों को बचाने के लिये सभी समुदायों के भावनात्मक जुड़ाव के बिना अपेक्षित परिणाम मिलना असंभव है। मुख्यमंत्री ने कहा कि बेटी बचाओ अभियान लोगों का अभियान है। यह व्यापक जनहित से जुड़ा विषय है। दुनियाभर में बेटियों को बचाने पर चिन्ता व्यक्त की जा रही है। राज्य सरकार ने यह पहल की है। समाज की व्यापक भागीदारी जरूरी है।

‘‘बेटी बचाओ अभियान यात्रा’’ 11 अक्टूबर से

मुख्यमंत्री ने कहा कि बेटियों के जन्म को उत्सव के रूप में मनाने की मानसिकता बनाने के लिये वे विभिन्न चरणों में ‘‘बेटी बचाओ अभियान यात्रा’’ का शुभारंभ करेंगे। बेटी बचाओ अभियान यात्रा के प्रथम चरण का शुभारंभ मैहर (सतना) से 11 अक्टूबर 2011 को होगा। यह यात्रा चार दिन चलेगी और सतना, पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर जिलों से गुजरेगी। इस दौरान जिला मुख्यालयों और यात्रा मार्ग में आने वाले तहसील मुख्यालयों पर मुख्यमंत्री की जनसभाओं का आयोजन होगा। बैठक में बताया गया कि नवरात्र के शुभारंभ से मोबाइल पर बेटी बचाने से संबंधित संदेशों का प्रसारण होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि धर्म गुरूओं, धर्म प्रचारकों, प्रवचनकारों, समाज सुधारकों, अशासकीय संगठनों, मीडिया संस्थानों के प्रमुखों, समाजों के प्रतिनिधियों, राजनैतिक दलों से अलग-अलग चर्चा की जायेगी और बेटियों के प्रति समाज में सकारात्मक दृष्टिकोण लाने और मानसिकता बदलने में समाज को जाग्रत करने का आग्रह किया जायेगा।
मुख्यमंत्री ने जिलों के प्रभारी मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और कलेक्टरों से अपने-अपने क्षेत्रों में जन जागरूकता के कार्यक्रम आयोजित करने का आग्रह किया है। सभी जिलों में बेटी बचाने के लिये संकल्प पत्र भरवाया जायेगा। समाज के विभिन्न वर्गों की सामाजिक, शैक्षणिक स्थिति को देखते हुए नारे तैयार करवाये गये हैं। गाँवों में दीवारों पर नारे लिखवाये जायेंगे। बेटियों से संबंधित मुद्दों के प्रति समाज को संवेदनशील बनाने के लिये बेटियों को गोद लोने वाले दम्पतियों को सम्मानित किया जायेगा।

मुख्यमंत्री निवास से शुरूआत

‘‘बेटी बचाओ अभियान’’ की शुरूआत पाँच अक्टूबर को मुख्यमंत्री निवास से होगी। शुभारंभ कार्यक्रम की रूपरेखा के अनुसार मुख्यमंत्री भोपाल जिले के लिये बेटी बचाओ रथ को रवाना करेंगे। करीब एक हजार बेटियों को मुख्यमंत्री निवास पर आमंत्रित किया जायेगा। इनमें आंगनवाड़ी, स्कूलों और महाविद्यालयों में पढ़ने वाली बेटियाँ शामिल होंगी।
बैठक में प्रमुख सचिव महिला बाल विकास श्री बी.आर. नायडू, प्रमुख सचिव वित्त श्री जी.पी. सिंघल, प्रमुख सचिव ग्रामीण विकास श्रीमती अरूणा शर्मा, जनसंपर्क आयुक्त श्री राकेश श्रीवास्तव, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के संचालक श्री मनोहर अगनानी, संचालक महिला एवं बाल विकास श्री अनुपम राजन एवं वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

बेटी बचाओ अभियान: पीएनडीटी एक्ट पर केन्द्रित होंगी अधिकांश गतिविधियाँ 

मध्यप्रदेश में पाँच अक्टूबर से प्रारंभ होने वाले ‘बेटी बचाओ अभियान‘‘ के तहत अधिकांश गतिविधियाँ पी.सी. एंड पी.एन.डी.टी. एक्ट (गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम) पर आधारित होगीं। राज्य शासन ने बेटी बचाओ अभियान के संबंध में मंत्रि परिषद की जो समिति गठित की थी, उसने 66 विभिन्न बिदुंओं पर गतिविधियों के संचालन का निर्धारण किया है। इनमें से ज्यादातर गतिविधियाँ पी.सी. एंड पी.एन.डी.टी. एक्ट के इर्द-गिर्द रहेगी। बारह विभागों की सहभागिता से संचालित होने वाली गतिविधियों में महिला एवं बाल विकास के अलावा स्वास्थ्य विभाग की भूमिका भी महत्वपूर्ण रहेगी।

लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग राज्य स्तर पर पी.सी. एंड पीएनडीटी इकाई गठित करेगा। जिला स्तरीय पी.सी. एंड पी.एन.डी.टी. प्रकोष्ठ का सुदृढ़ीकरण किया जायेगा। एक्ट के उल्लंघन की ऑन-लाईन शिकायत दर्ज करने के लिए वेबसाईट www.hamaribitiya.nic.in संचालित की जायेगी। एक्ट पर जिला समुचित प्राधिकारी (कलेक्टर), सलाहकार समितियों, जिला अभियोजन अधिकारियों का सघन प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किया जायेगा।
पीएनडीटी एक्ट के अंतर्गत जिला सलाहकार समितियों में विशेषज्ञ अशासकीय संस्थाओं का नामांकन सुनिश्चित किया जायेगा। चिकित्सकों के संगठन फॉग्सी (FOGSI), इरिया (IRIA), आई.एम.ए. (IMA) आदि को एक्ट के सफल क्रियान्वयन के लिए सकारात्मक भूमिका निभाने हेतु सहमत किया जायेगा। प्रदेश से लगे अन्य राज्यों के सीमावर्ती जिलों के साथ एक्ट के पालन हेतु सहभागी कार्यक्रम होंगे। राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के सहयोग से न्यायिक सेवा के अधिकारियों को एक्ट के प्रावधानों से अवगत कराया जायेगा। सोनोग्राफी केन्द्रों पर मॉनीटरिंग में आई.टी. का उपयोग होगा। इसके तहत ऑन-लाईन वेबपोर्टल स्थापित होगा। एक्टिव ट्रेकर (साइलेंट ऑब्जर्वर) के माध्यम से सोनोग्राफी केन्द्रों की निगरानी रखी जायेगी। प्रयोग के तौर पर ग्वालियर, भोपाल, जबलपुर, इंदौर सहित सभी संभागीय मुख्यालयों पर यह व्यवस्था रहेगी।
पी.सी. एंड पी.एन.डी.टी. एक्ट के अंतर्गत संचालित पुरस्कार योजना में संशोधन करते हुए किसी भी प्रकार की जानकारी देने पर सूचनाकर्ता को उस प्रकरण का चालान प्रस्तुत होने पर पच्चीस हजार रूपये, चार्जेस फ्रेम होने पर पच्चीस हजार रूपये एवं प्रकरण में दोषी को सजा होने पर पचास हजार रूपये की राशि, इस प्रकार कुल एक लाख रूपये दिये जायेगें। सोनोग्राफी संबंधी शिकायतों के लिए एक टोल-फ्री कॉल सेंटर स्थापित कर सोनोग्राफी केन्द्रों पर इस आशय का नोटिस लगेगा कि ‘‘लिंग परीक्षण संबंधी शिकायत करने के लिए टोल-फ्री नंबर पर फोन करें। इसमें यह दर्शाया जायेगा कि शिकायत सही पाये जाने पर शिकायतकर्ता को योजना के अनुसार एक लाख रूपये का पुरस्कार दिया जायेगा। शासकीय मेडिकल कॉलेज में सोनोग्राफी का छः माह का प्रशिक्षण भी शासकीय चिकित्सकों को दिया जायेगा। केवल रेडियोलॉजिस्ट, गायनोकोलॉजिस्ट अथवा के बाद एमबीबीएस डॉक्टर को ही ऑब्सट्रेटिक सोनोग्राफी का प्रशिक्षण दिया जायेगा। प्रशिक्षित एमबीबीएस चिकित्सकों द्वारा केवल जिला स्तर से नीचे के शासकीय अस्पतालों में सोनोग्राफी की जा सकेगी। प्रशिक्षण चिकित्सक सिर्फ शासकीय अस्पतालों में ही सोनोग्राफी कर सकेगें तथा निजी सोनोग्राफी मशीन संचालित नहीं कर सकेगें। इन चिकित्सकों का उक्त प्रशिक्षण शासकीय सेवा में रहते हुए ही मान्य रहेगा, जिस दिन वे सेवा से अलग होगे, उस दिन यह प्रशिक्षण स्वमेव अमान्य हो जायेगा। एक सोनोलॉजिस्ट तीन से अधिक सोनोग्राफी केन्द्रों पर कार्य नहीं कर सकेगा। निजी चिकित्सकों को शासकीय मेडिकल कॉलेजों में सोनोग्राफी का प्रशिक्षण नहीं दिया जायेगा।
चिकित्सा पाठ्यक्रम एवं नर्सिंग पाठ्यक्रमों में पी.सी.एडं पी.एन.डी.टी. एक्ट, लिंग संवेदीकरण एवं वर्तमान परिदृश्य में बेटी बचाओ अभियान की महत्ता विषय के समावेश की पहल की जायेगी। एक्ट के अंतर्गत सोनोग्राफी मशीन संचालित करने के लिए एक वर्ष के अनुभव प्रमाण-पत्र के आधार पर दी जाने वाली अनुमति को अमान्य किया जायेगा। घटते शिशु लिंगानुपात के परिप्रेक्ष्य में एम.टी.पी. एक्ट (चिकित्सीय समापन अधि.) में भी आवश्यकता के अनुसार संशोधन होगें।
प्रलय श्रीवास्तव
हादसे ने बदला लिंगानुपात
भिण्ड जिले के खरौआ गाँव में इसी साल जून में हुए एक हादसे के बाद वहाँ लड़कियों की अहमियत फिर बढ़ गई है। नतीजा यह है कि बच्ची के जन्म को अभिशाप मानने वाले इस गाँव में पिछले तीन महीनों में न सिर्फ 14 बच्चियाँ पैदा हो चुकी हैं बल्कि, उनकी अच्छी परवरिश के चलते वे पूरी तरह स्वस्थ हैं। यही नहीं, गाँव में लड़के-लड़की के जन्म का अनुपात ही पूरी तरह बदल गया है।
खरौआ गाँव में 30 जून को पूर्व सरपंच सूर्यभान सिंह गुर्जर के यहाँ एक बच्ची जन्मी थी। लेकिन बजाय खुशियों के, उसके घर मातम पसर गया। जुनूनी सूर्यभान ने तो आपा खो कर अपने परिजन के साथ उस मासूम नवजात का बेरहमी से कत्ल ही कर डाला। सबसे दुःखद बात तो यह थी कि इस बच्ची को अपनी माँ के साथ घर जाने तक का मौका नहीं दिया गया था। सीधे सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र से बच्ची को उठाकर उसे मौत के घाट उतारा गया।
जिला प्रशासन ने इसकी खबर लगते ही कानूनी कार्रवाई के बतौर जो जरूरी था उसे अंज़ाम दिया। गाँव के मौजूदा सरपंच रामअख्तियार सिंह से सूर्यभान के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई गई। जिला कलेक्टर की पहल पर मामले की जाँच पुलिस अफसरों ने की और अपराधियों को सीखचों में पहुँचाया। कलेक्टर ने इस सामाजिक बुराई के मुकम्मल खात्मे का एक और तरीका अपनाते हुए गाँव में लड़कियों के प्रति सद्भाव पैदा करने का माहौल भी बनवाया। उन्होंने यह ताकीद की कि गर्भ में पलने वाली या जन्म लेने वाली बच्ची के खात्मे की फिर किसी ने जुर्रत की तो प्रशासन उसके साथ और सख्ती से पेश आयेगा।
इसके बाद गाँव में 14 बच्चियाँ जन्म ले चुकी हैं। यही नहीं, लिंग-अनुपात में भारी बदलाव आ गया है। बानगी यह है कि साल 2009 में जहाँ इस गाँव में 17 बालक और 8 बालिकाएँ जन्में थे वहीं साल 2011 में 4 बालक और 14 बालिकाएँ पैदा हुए हैं। इनकी अच्छी परवरिश भी चल रही है। इस आश्चर्यजनक परिवर्तन से अब गाँव वाले चौंकते नहीं हैं, बल्कि खुशी जता रहे हैं।
योगेश शर्मा

कितना असरदार

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