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8 अक्तू॰ 2009

आज डूबे जी के अखबार में


ज़ाकिर अली ‘रजनीश’  जी कल  "खज़ाना" में जो कुछ लिखा था आज दुबे जी वही डूबे जी वाले के अखबार यानी नई दुनिया के जबलपुर एडीशन में आज छापा है . जो बाएँ तरफ वाली करतूत है अपने  डूबेजी की है  शहर भर के चंदू भाई लोग उनकी तलाश में निकले और वे अपने आप को बचाने सरे-शाम घर में जा छुपे.......! अब जब इसी बहानेकरवा चौथ की बात निकल ही चुकी है तो आज दिन भर जो भी कुछ घटा सो जानिए . एक पुरानी प्रेमिका कल्लू जी से मिली तो पता है झट उसने बच्चे से कहा -"बेटे, ये कल्लू मामा हैं प्रणाम करो इनको !"
इधर मेरी श्रीमती जी मुझसे मेरा ये वाला  रूमानी ब्लॉग खोल कर कहतीं है "कह दो न इस पर जो भी लिखते हो सिर्फ मेरे लिए ही है मुझ पर केन्द्रित ही है ".......अब बताइये 45  बरस की उम्र में हम क्यों जोखिम उठाएं सच बोल कर तलाक की नौबत क्यों लायें ?  इस उम्र में हम जैसों में ध्वनि-हीन संवाद  करने की स्किल विकसित हो ही जाती है.क्यों उड़न तश्तरी जी सही है न ..? आप तो इस फील्ड के उधर रचना ने किसी  की मूर्खताओं  की मज़म्मत  देख मन को लगा  की सभी कुत्सिस कोशिशों के लिए एकजुट हो रहे हैं. किन्तु सच कहूं   संजय बेंगाणी भाई धीरू भाई  जिस तरह से टिप्पणी  बोझ भगवान अल्लाह प्रभू करे ऐसे दिन किसी को न दिखाए .
 क्रमश:

5 टिप्‍पणियां:

  1. बधाई हो जी!! डुबे जी के अखबार में आना उपलब्धि है. :)

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  2. माफ करना भाई, ये मामला समझ में नहीं आया।

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  3. प्रयोग शानदार है..पत्नी को बोल दीजिए...यहां पर जो लिखा है वो पढ़ लें। बोलने की जरूरत ही नहीं जी...बहुत शानदार वहां जा रहा हूं।
    रूमानी ब्लॉग पर

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  4. बहुत सुंदर लिखा, मै आप के दुवारा दिये गये लिंक पर गया"किसी की मुर्खता.., दिल खराब हुआ, आप का धन्यवाद

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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