कमार विश्वास ने जबलपुर में जो हरक़त की वो ओछी थी इसमें कोई दो मत नहीं. पहली पोस्ट के के बाद जिस तरह सुधि जन सामने आए वो एक अलग अनुभव है.
ब्लागजगत ने क्या कहा देखिये आप स्वयं
पद्मसिंह:-एक पगली लड़की को लेकर युवा मन को दीवाना बनाने की बाजीगरी में सिद्ध हस्त हैं कुमार विश्वास जी....गन्दा है पर धंदा है ये
अनूप शुक्ल : कुमार विश्वास के बारे में सम्यक विश्लेषण के लिये यह पोस्ट देखिये:
http://amrendrablog.blogspot.com/2010/08/blog-post.html
डाक्टर अजित गुप्ता:-मैंने उनके कारनामें अमेरिका में देखे हैं। आज का समाज किस ओर जा रहा है यह उनकी लोकप्रियता से ज्ञात होता है।
नुक्कड़ :-कुमार भी विश्वास भी ?
Er. सत्यम शिवम आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (09.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
अमित के. सागर याद है कि आपने आयोजन के पारिश्रमिक को लेकर क्या कहा था उसका खुलासा कर ही दूंगा आयकर विभाग को भी तो पता चले प्रोफ़ेसर साहब ?"
उक्त सन्दर्भ में जानने को अतिउत्सुक हूँ. शेष जो कमेंट्स पढने को मिली हैं...फिर तो और भी...और भी कुछ इन के बारे में!
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कवियों को भी ऐसा हो सच गर,
तो आना चाहिए बाहर हर कीमत पर
कहते हैं कि कवि तो दिल से रोटी बना खाता है
फिर कविता से भला कारोबार कैसे कर पाता है?
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बवाल एक अजीबोग़रीब मंज़र कल रात देखने को मिलता है :-
एक यूथ आईकॉन नामक व्यक्ति बड़ी तन्मयता से ओल्डों की धज्जियाँ उड़ाता जा रहा है;
परम आदरणीय अन्ना हजारे जी को जबरन अपने झंडे तले ला रहा है;
अपने आपको इलाहाबादी अदब की प्रचारगाह बतला रहा है और बच्चन साहब को जड़ से भुलवा रहा है;
अपने एकदम सामने बैठे हुए स्थानीय बुज़ुर्ग नेताओं, मध्य प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष आदि पर तबियत से अपने हलाहली शब्दवाण चला रहा है;
विनोबा बाबा की प्रिय संस्कारधानी के मँच पर खड़ा या कह सकते हैं सिरचढ़ा होकर, कहता जा रहा है कि मैं उपहास नहीं, परिहास करता हूँ और उपहास ही करता जा रहा है;
जमूरों का स्व्यंभू उस्ताद बनकर अपने हर वाक्य पर ज़बरदस्ती तालियाँ पिटवा रहा है;
(इतनी तालियाँ अपनी ही एक-दूसरी हथेलियों पर पीटने से बेहतर था कि तालियाँ पिटवाने वाले के सर पर बजा दी जातीं, जिससे उसे लगातर ये सुनाई देतीं जातीं और उसे बार आग्रह करने की ज़हमत न उठाना पड़ती, समय भी बचता और ............. ख़ैर)
उसे जाकर कोई कह दे भाई के,
मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं,
सिर्फ़ बकरी के प्यारे बच्चे के मुँह से ही कर्णप्रिय लगती है, आदमी के (दंभी) मुँह से नहीं।
शेष टिप्पणी अगले अगले आलेख की अगली किस्त में......
---जय हिंद
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) said...बढ़िया प्रस्तुति!कुमार विश्वास जी को हार्दिक बधाई।
भारतीय नागरिक ओह!
विजय तिवारी " किसलय " संस्कारों का सन्देश देने वाली संस्कारधानी जबलपुर में विगत ७ मार्च को एक कमउम्र और ओछी अक्ल के बड़बोले लड़के ने असाहित्यिक उत्पात से जबलपुर के प्रबुद्ध वर्ग और नारी शक्ति को पीड़ित कर स्वयं को शर्मसार करते हुए माँ सरस्वती की प्रदत्त प्रतिभा का भी दुरूपयोग किया है. टीनएज़र्स की तालियाँ बटोरने के चक्कर में वरिष्ठ नेताओं, साहित्यकारों, शिक्षकों एवं कलाप्रेमियों की खिल्लियाँ उड़ाना कविकर्म कदापि कहीं हो सकता... निश्चित रूप से ये किसी के माँ- बाप तो नहीं सिखाते फिर किसके दिए संस्कारों का विकृत स्वरूप कहा जाएगा.
कई रसूखदारों को एक पल और बैठना गवारा नहीं हुआ और वे उठकर बिना कुछ कहे सिर्फ इस लिए चले गए कि मेहमान की गलतियों को भी एक बार माफ़ करना संस्कारधानी के संस्कार हैं. महिलायें द्विअर्थी बातों से सिर छुपाती रहीं. आयोजकों को इसका अंदाजा हो या न हो लेकिन श्रोताओं का एक बहुत बड़ा वर्ग भविष्य में करारा जवाब जरूर देगा. स्वयं जिनसे शिक्षित हुए उन ही शिक्षकों को मनहूसियत का सिला देना हर आम आदमी बदतमीजी के अलावा कुछ और नहीं कहेगा . इस से तो अच्छा ये होता कि आमंत्रण पत्र पर केप्सन होता कि केवल बेवकूफों और तालियाँ बजाने वाले "विशेष वर्ग" हेतु.
विश्वास को खोकर भला कोई सफल हुआ है? अपने ही श्रोताओं का मजाक उड़ाने वाले को कोई कब तक झेलेगा, काश कभी वो स्थिति न आये कि कोई मंच पर ही आकर नीतिगत फैसला कर दे.
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अपने कार्यक्रम के दौरान कुमार विश्वास ने जो मंचीय अपराध किये वे ये रहे
- मध्य-प्रदेश के माननीय विधान-सभा अध्यक्ष मान० ईश्वर दास जी रोहाणी के आगमन पर अपमान जनक टिप्पणी
- श्री अलबेला खत्री जी का नाम आयोजकों पर दवाब डाल के कार्ड से हटवाया. और जब वे उड़ीसा के लम्बे सफ़र के बाद जबलपुर में कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे तो उनको "अभद्रता पूर्वक "अलबेला अलबेला का संबोधन करना.
- टीनएज़र्स की तालियाँ बटोरने के चक्कर में वरिष्ठ नेताओं, साहित्यकारों, शिक्षकों एवं कलाप्रेमियों की खिल्लियाँ उड़ाना कविकर्म कदापि कहीं हो सकता... निश्चित रूप से ये किसी के माँ- बाप तो नहीं सिखाते फिर किसके दिए संस्कारों का विकृत स्वरूप कहा जाएगा.
- भारतीय प्रेम को पाश्चात्य सेक्स से तुलना करने वाला रटा हुया जुमला
- इटारसी म०प्र० के कवि राजेंद्र मालवीय की कविता को अपने साथ हुई घटना के रूप में व्यक्त करना
- वयोवृद्ध श्रीयुत रोहाणी जी के समक्ष स्वल्पहार रखते समय अभद्रता पूर्वक कटाक्ष करना.
- उनके प्रस्थान के समय अभद्रता पूर्वक इशारे करना.
- कुछ दिनों पूर्व मुझसे एक अन्य कार्यक्रम के आयोजन के बारे मेरे द्वारा फ़ोन पर संपर्क करने पर कहा जाना "बिल्लोरे जी,एक लाख लूंगा, किराया भाड़ा अलग से वो भी टेक्स मुक्त तरीके से " (आयकर विभाग ध्यान दे तो कृपा होगी.)अब आप ही निर्णय कीजिये आज़ देश भर के लिये जूझने वाले संत अन्ना-हजारे के साथ "जंतर-मंतर पर खड़े होने वाले बच्चों को रिझाने बहकाने वाले नकारात्मक उर्जा का संचार कर देने वाले भाई कुमार विश्वाश दोहरा चरित्र देश को किधर ले जा रहा है. "
वैसे हम साहित्य प्रेमियों की नज़र में यह व्यक्तित्व अतिशय कुंठित एवम "अपनी स्थापना के लिये कुछ भी करने वाला साबित हुआ है." जिसे यह शऊर भी नहीं कि "संवैधानिक पदधारियों से कैसा बर्ताव किया जाता है....? "
मेरी नज़र में "कुमार विश्वास" गांव में आये उस मदारी से बढ़कर नहीं जिसका हम भी बचपन में इंतज़ार करते थे .
अंत में छोटे बच्चे की तरह समझाईश कुछ यूं :-
अगर तू गीत गाता है तो बस तू गीत गाता चल
टोटकों से निकल बाहर खुद को आज़माता चल
तेरी ताक़त तेरी शोहरत नही,तेरी वफ़ादारी-
सभी से मत बना रिश्ते बना तो फ़िर निभाता चल.
कुमार विश्वास के बारे में पहले भी काफ़ी कुछ कह चुका हूं मैं। विस्तार से अमरेन्द्र ने भी लिखा है। कुमार विश्वास में बदतमीजी की हद तक बड़बोलापन है। कविता की सहज समझ चौपट है। पिछले साल एक समारोह में, जहां कुमार विश्वास को बुलाया जाना था, जिस तरह इन्होंने आयोचकों को परेशान किया उससे मुझे लगा कि ये महाशय अजीब नखरेबाज हैं। बेचारे आयोचकों ने उनके लिये अच्छी-खासी एयरकंडीसन्ड गाड़ी का इंतजाम किया था लेकिन अगले के यहां से संदेशे आ रहे थे कि बड़ी गाड़ी भेजिये। हमने आयोजकों को सुझाया कि इनके लिये तो टॄक मुफ़ीद रहेगा। इसके बाद मैं यह कहकर कि लौट आया कि मैं ऐसे नखरेबाज चुटकुलेबाज की शकल नहीं देखना चाहता।
जवाब देंहटाएंमुझे आश्चर्य है कि अभी तक आपके यहां कुमार समर्थक के अंधे भक्तों की फ़ौज हमला करने क्यों नहीं आयी? उदाहरण यहां देख लीजिये http://hindini.com/fursatiya/archives/1612
आप लोगों ने कार्यक्रम सुना है, मैं वहाँ उपस्थित नहीं था.. जिस कलाकार को आप इतने मन से सुनने गये हों, उसके द्वारा किसी का भी अपमान और उपहास हो तो ऐसे में आपका गुस्सा स्वभाविक है.
जवाब देंहटाएंआज कुमार की लोकप्रियता का चरम एवं युवावर्ग से उनका जुड़ाव एक गौरव का विषय है किन्तु उसके बाद भी हर बात कहने की अपनी मर्यादायें और सीमा रेखाएँ होती हैं, उसका ध्यान उन्हें देना चाहिये.
कविता का स्तर, चुटुकुले बाजी या अन्य बातचीत पर मैं कुछ नहीं कहना चाहता क्यूँकि इन्हीं सबने कुमार को यह लोकप्रियता दी है कि आज भारत के सबसे मंहगे कवि होने का उन्हें गर्व हासिल हैं और हर जगह उन्हें बुलाया जा रहा है. आज वह एक यूथ आईकान हैं.
जो जनता आज कलाकार को इतना नाम और शोहरत देती है -वही जनता उस कलाकार के व्यवहार के चलते उसे अपनी नजरों से उतार भी सकती है, यह ध्यान हर कलाकार को रहना चाहिये.
एकबार पुनः, न केवल बुजुर्गों का अपितु हर व्यक्ति के सम्मान का ख्याल रखा जाना चाहिये. संस्कृति का ख्याल रखा जाना चाहिये. उपहास या अपमान कभी भी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिये. अनेकों अन्य तरीके हैं हँसने हँसाने के.
हम तो यही दुआ करते है भविष्य में ऐसा ना हो | नहीं तो एक कवि जैसा भी है वह अपना स्थान खो देगा
जवाब देंहटाएंदूसरों की अपमान की हद तक खिंचाई करना...अपने आगे किसी को कुछ ना समझना…निर्लज्ज होकर ऊट पटांग पैसे मांगना…खुद को अमिताभ.शाहरुख और हिर्तिक रौशन से बड़ा स्टार मानना….अपनी प्रस्तुति के समय मंच की विडियो रिकार्डिंग बन्द करवा देना…आयोजकों से गैर-ज़रुरी खर्चे करवाना इत्यादि उनकी घमंडात्मक सोच का परिचायक है …महज़ एक गीत को सुनाने में डेढ़ से दो घंटे तक लगा देना(शायद उनके लिए श्रोताओं के समय की कोई कीमत नहीं है या फिर उनके पास और कुछ है ही नहीं अपने श्रोताओं को सुनाने के लिए) अपने लोकप्रिय गीत की एक पंक्ति सुनाने के बाद इधर-उधर की और ना जाने किधर-किधर की हांकने के बाद फुर्सत मिलने पर फिर पहली पंक्ति से पुन: उसी गीत को शुरू करना उनकी खास आदतों में शुमार है|
जवाब देंहटाएंक्रमश:
उनकी नज़रों उन लोगों की भी कोई कद्र नहीं जो उन्हें अपना दोस्त…अपना मित्र…अपना सखा कहते हैं और उनके लिए…उनके ही नाम से ब्लॉग तक बना कर उसे नित नियम से अपडेट भी करते हैं|
जवाब देंहटाएंकुमार विश्वास जी की नज़रों में ऐसे सब लोग उनके मित्र नहीं बल्कि फैन मात्र हैं जो अपनी मर्जी से…अपनी खुशी के लिए ये सब कर रहे हैं(ऐसा उन्होंने खुद मुझसे पानीपत के एक कवि सम्मलेन में हुई बातचीत के दौरान कहा)
अश्लील एवं भौंडी चुटकलेबाज़ी करके…किसी को भी नहीं बक्शने की अपनी सोच के चलते चर्चा में बने रहना अगर हुनर है तो फिर वाकयी में ये हुनर उनमें कूट-कूट भरा हुआ है
उनसे हुई एक मुलाक़ात के दौरान मैं उनके बारे में बस इतना ही जान पाया हूँ
यही सब पतन के कारक हैं.....
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