गीत प्रीत के गाते गाते
सपनों में खो जाता मन !
गीत प्रीत के गाते -गाते सपनों मे खो जाता मन !
आंगन, आला, तुलसीचौरा, कंहाँ कहाँ खो जाता मन !!
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बिस्तर नीचे राखी थी पायल ,रूपल के घर खोज चली -
तवे रखी रोटी चूल्हे की , अपने घर तो रोज़ जली !
सास का ताना , सखी का आना, अनबन अन मन दिनभर की
आंसू आंख से टप -टप टपके ,नीम हो जैसे पतझर की !
आंखें जाग रहीं होतीं हैं , थक कर के सो जाता मन !!
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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!