10 जून 2007

रातें दोषी नहींअंधेरों के लिए

अंधेरों के लिए
रात को दोष मत दीजै
रातें सूरज की मज़बूरी के सिवा कुछ भी नहीं !!
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ये अंधरे नहीं
सुकूँ के लिए मौका है
इस बेहतर दुनियां में दवा कुछ भी नहीं !!
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जब भी होता है अँधेरा
तो दीप जगते हैं
मायने रोशनी के तब सभी समझते हैं !
ज़िंदगी *निशीथ के सिवा कुछ भी नहीं !!
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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!