18 जुल॰ 2007

औरों से मत जलो तुम झुलस जाओगे,आग नाते किसी से रखेगी कहाँ ....?

औरों से मत जलो तुम झुलस जाओगे,आग नाते किसी से रखेगी कहाँ ....? ***************************
ग़र हो कुंदन तो रुकना कसौटी पे तुम ,
हाँ यक़ीं मान लो फिर निखर जाओगे..!
ग़र जो सोना नहीं तो डरो आग से,
राख बनके हवा में बिखर जाओगे....!
झुलसे और माने मेरी बात जो
अधजला चेहरा लेके किधर जाओगे....?
न किसी से जलो न किसी से डरोमौक़ा ऐसा सुनहरा कहाँ पाओगे !!
औरों से जलो ....................!
********************* गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!