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6 जुल॰ 2007

श्रद्धा बिटिया के लिए

भोर की किरणों ने आके जब जगाया
हम से पहले पंछियों के गीत जागें!
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आम पर तोते पुकारें ,
गली में गौएँ गुहारें !
माँ उठा हम बेटियों को
गयीं कह आंगन बुहारें !!
माँ का जीवन घर में पीछे काम में वो सबसे आगे !!
हम ............
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पाठशाला गाँव की कितनी अनोखी
सभी श्रम के पथ बताते ।
भोले लोगों को हमेशा
सत्य के ही गीत भाते !!
ग्राम का जीवन सलोना , नगरों से हैं कितने आगे !!
हम...............
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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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