Ad

26 अग॰ 2007

आँखें हैं आपकी या पूजा का दीप है

आँखें हैं आपकी या पूजा का दीप है
हटती नहीं हमारी निगाहों का करें....?

हक़ीमों के पास यक़ायक बढने लगे मरीज़
उस नाज़नी की क़ातिल अदाओं का क्या करे...?

वो इश्क़ नहीं! करतीं हैं-"सियासत आज़कल"
हर ख़त में लिखी वफ़ाओं का क्या करें ....?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

Free Page Rank Tool

यह ब्लॉग खोजें