10 मई 2008

नाम हेमराज जैन



उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले का मुडावरा गाँव जो महरौनी तहसील में है, ७०-७१ बरस पहले वहाँ इक किशोर के जीवन का इक दृश्य
नाम :हेम राज जैन
उम्र :१०-११ वर्ष
काम: पढ़ना ,
शौक : पुराने कागजों पर पेन पेंसिल से चित्र बनाना
यही शौक उसे बनाएगा मशहूर चित्र कार इस बात का गुमान उस किशोर को न था । जीवन के लक्ष्य तय करने उन दिनों विकल्प और सुविधाएं भी कम ही हुआ करतीं थी। कम विकल्पों के साथ जीवन के अगले लक्ष्य नियत करना कितना कठिन रहा होगा "किशोर वय के हेमराज़ "के लिए।
हेमराज कौन है , कहाँ हैं , क्या खूबी थी उनमें इस बात का ज़वाब जानने आप यदि ४० बरस की उम्र के आस पास हो तो कृपया अपने घरों की दीवारों पे टंगे बिटको,अथवा अन्य कंपनियों के केलेंडर्स को याद कीजिए । उन्हीं केलेंडर्स पे सुंदर से अक्षरों में लिखा होता था ....."हेमराज"
यही वो किशोर था जो आगे चल के कैलेंडर बनाता था ।
भारत में पद्म,रत्न,भूषण,विभूषण,जाने कितने पुरूस्कार बंट्तें हैं । इस हीरे पर कम ही लोगों की नज़र पड़ी जिसने इंग्लिस्तान के काय-विज्ञानियों के लिए हेमराज जी ने जो मानव शरीर की अंत: आकृति को रचा एनोटोमी के लिए अद्भुत सृजन था ।
ए० एम० बी० एस० की डिग्री लेकर डाक्टर बने हेमराज जी जिला आयुर्वेद अधिकारी पद से रिटायर्ड हैं। आँखे ज्योति विहीन हैं । जैन धर्म के अनुयायी हेमराज जी आज लगभग ८० वर्ष के हैं । व्रती हैं , कोई भी संकल्प कभी भी नहीं त्यागते। जितेन्द्रिय है । जबलपुर में ही रह रहें है ।

* *हेमराज जी कैसे बने चित्रकार **
बुन्देल खंड आयुर्वेदिक कालेज,झांसी में ए० एम० बी० एस० के अन्तिम वर्ष में पढ़ रहे थे। उसी कालेज में कलकत्ता से वैद्यनाथ के मालिक आए एनाटामी पर छात्रों के काम देख प्रभावित हुए। सबसे ज़्यादा हेमराज जी के चित्र उनको भा गए। डिग्री ख़त्म होते ही कलकत्ता आने का निमंत्रण वो भी कम्पनी में प्रमुख कलाकार के बतौर । जहाँ से बचपन के सपनों को आकार मिला और रोज़गार एनाटॉमी के चित्र नाड़ियों के गुच्छों को बनाना सहज कहाँ बंद कमरे में एकाग्र हो चित्र बनाते हेमराज जी की आंखों की ज्योति कम होने लगी । संस्थान के डाक्टरों ने कहां डाक्टर साब आप तो अब चित्र कारी छोड़ दीजिए वर्ना आंखों से पूरी ज्योति चली जाएगी । लौट आए वापस

तब तक हेमराज जी सैकड़ों चित्र बना चुके थे- पाठ्यक्रमों के लिए ,और साथ ही साथ आम घरों में लगने वाले ईश्वररूपों की तस्वीरें भी।
मडावारा के जैन किराना व्यापारी दया चन्द्र जैन के दो पुत्रों में इनके बड़े भाई प्रताप चन्द्र जैन भी हेमराज जी के समकक्ष डिग्री धारी थे। दोनों ही म० प्र० सरकार के आयुर्वेदिक विभाग के चिकित्सक के रूप में चुने गए ।
मध्यप्रदेश का राजगढ़ जिला इनका कार्य क्षेत्र रहा। सेवानिवृति के समय सागर जिला" सागर जिला हेमराज जी का कार्य स्थल रहा है।
इनके बड़े भाई श्री प्रताप चन्द्र जैन भी रिटायर्ड होकर भोपाल भोपाल में बस गए।
*क्या करते हैं हेमराज़ जी अब ये सवाल आपको परेशान तो कर ही रहे होंगे सो जानिए
"मेरे मित्र धर्मेन्द्र जैन के ससुर हैं श्री हेम राज जी इन पर कई दिनों से फीचर लिखना चाहता था नौकरी की व्यस्तता की चलते देर हुई किंतु पहले लिख भी देता तो अखबारों की कृपा से ही कहीं छप पाता फीचर ब्लॉग से देर तक दुनिया की साथ रहेगा "
हाँ तो हेमराज जी की ज़िंदगी व्यक्तिगत तौर पर संघर्ष का दस्तावेज़ है। शादी के कुछ साल बाद पत्नी की देहावसान की बाद २ बरस की बिटिया अंजना की परवरिश माँ बन के इन्हीं ने की। ब्रह्मचर्य-व्रती श्री जैन अपने बेटे दामाद के परिवार के साथ रहतें हैं ।
उनके साथी हैं धर्मेन्द्र के पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री के० सी० जैन,
"जैन धर्म के मूल सिद्धांतों के मीमांसक हेमराज जी नरसिंहगड़ में जीव दया संस्थान से जुड़े थे . पर पीडा न देखने वाले युग में जब हम कुत्ते बिल्लियाँ ऊँची नस्ल के पशु केवल अपने स्टेटस को साबित कराने के लिए पालतें हैं तब हेमराज जी मूक पशुओं की सेवा को अपना व्रत मानतें हैं. नरसिंहगढ़ से लाए थे वे छोटी को कुत्ते के यह पिल्ली उनको नाली में घायल अवस्था में दिखाई दी, पिछले पैर घायल.थे छोटी के तब ! चिकित्सा और सेवा से इस निरीह पशु को जीवन मिला . अभी भी है उनके साथ . दामाद धर्मेन्द्र बतातें हैं: उनका संकल्प निरीह जीवनों की रक्षा करने का है. गली कूचों में तड़पते किसी भी पशु की रक्षा के लिए उनकी आत्मा द्रवित हो जाती है।

सच भी है मैंने कई पशुओं की सेवा करते उनको देखा है।
  • "इक बार भोजन दो बार पानी "

वर्ष भर के ३६५ दिनों में केवल हेमराज जी ने ७३० बार पानी पीया तथा ३६५ बार सादा भोजन

आप हम ये सब कुछ कर सकतें हैं....!

ज़बाव होगा नहीं

पूरा दिन घर के पीछे लगे छोटे से पेढ़ पोधों की सेवा में लगे रहने वाले


3 टिप्‍पणियां:

  1. काफी अच्छा !

    विवेक
    mailtovivekgupta@gmail.com

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  2. गिरीश जी, हेमराज जी के ऊपर लिखी जाने वाले विस्त़त पोस्ट का हम बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं और साथ में हो सके तो उन के काम की कुछ तस्वीरें भी।

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  3. इन्तजार है जैन साहेब पर विस्तार से पोस्ट का. आभार इस जानकारी के लिए अभी.

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!