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27 मई 2008

ब्लागायण

सत्य कथा तुम सहज बखाना : ब्लागन को आयुध सम माना !
ब्लाग भडास बनेउ पर्याया : गठरी खुल दिखी मोहे काया !
जंह देखी तंह कैंकड़ बृत्ती : लिख-लिख दरसित होवे सकती.!
नारी नाम से ब्लॉग बनाया : नामी हुई अरु नाम कमाया !
हिन्दी ब्लागर युद्धरत, करें पोस्ट से वार , कछु के आयुध भोंथरे कछु की तीखी धार।
कछु ले लांछन पोटली बनते दरसन वीर, कछु तो छोढे जा रहे गहन तिमिर में तीर।।

ब्लागिंग की निति बने, बड़े सहज बिस्बास, हिन्दी का कीजै भला छोड़ के सब बकबास॥




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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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