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3 अग॰ 2008

दोस्ती का हांफता हफ्ता और दोस्ती का दिन


आज मेरा ये दोस्त आस्तीन से बाहर आ कर मुझसे नाराज होकर मुंह फेर के बैठ गए... और गाने लगे
मेरे दोस्त किस्सा यह - क्या हो गया,सुना है की तू..............?
आज आस्तीन में बैठा वो मुझे लगा ये गाना सुनाने मैंने कहा भाई
तुम तो रोज़ मेरे साथ रहते हो आज जो एक दिन मुझे बाहर वालों को दोस्ती की दुहाई देने का मौका मिला तो आप बुरा मान क्यों रहे हो हो अरे :-हुए हैं तुम पे आशिक हम भला मानो बुरा मानो ...?
नहीं जी मैंने कई बार तुमको की बाहर वालों पे भरोसा मत करो , उनका न तो बाहर से और न ही भीतर से समर्थन लो याद है न बहनजी ने जिन पे किया भरोसा उन्हीं ने छीना परोसा........?
भरोसा करो तो किस पे अरे भाई कोई माने या न माने दोस्तों के दोस्ताने में अब वो बात कहाँ ...?
कौन सी बात ...?
वही बात जो प्रेमचंद - , की "पंच-परमेश्वर"के दोस्तों में हुआ करती थी।
अरे भाई छोडो न मैं ने तुमको न छोड़ना ....!
छोडोगे भी अरे मैंने फोन पे ही तो सबको "हेप्पी फ्रेंडशिप डे कहा है कोई मित्रता का कांट्रेक्ट साइन तो नहीं किया "
मेरा आस्तीन वाला दोस्त बोला - भाई कवि हो दुनिया दारी का इल्म नहीं है ...! हर कदम सम्हाल के रखना जादा दोस्त मत बनाओ एकाध है उसी से ही काम चलाओ। फ़िर इधर उधर भडास निकालते फिरोगे मुहल्ले भर में ॥!
की फलां ने ये किया ढ़िकाँ ने वो किया ।
मैंने कहा भैया कवि हूँ तभी दुनियादारी को करीब से बांच लेता हूँ तुमको याद है...ये सही है मिसाल बेमिसाल फ्रेंडशिप-अब नहीं मिल पाएगी रब से दुआ करो भाई की सलामत रहे दोस्ताना हमारा
अग्रिम आभार : दैनिक-भास्कर/यू-ट्यूब/

विशेष निवेदन: यह पोस्ट केवल हास्य-व्यंग्य के लिए है । किसी को आहत करना,उदेश्य नहीं । तस्वीरें अगर कापी राइट युक्त हैं तो कृपया अवगत कराइए !

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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