1 अग॰ 2008

दोस्ती के इस सप्ताह को समर्पित

इस ब्लॉग को संगीत मय बनाने में मदद मिली "स्वर सृजन (SWAR SRIJAN) "की मैं आभारी हूँ डा. मेराज अहमद. अलीगढ, उत्तरप्रदेश का और मीत का
हजूर ये हफ्ता दोस्ती के नाम करने के पहले आप अपनी पारखी नज़र को तीखी करालीजिये
वर्ना आप कल कल्लू पान वाले की दूकान ,कहवा घर में या बाथ रूम में ये गुनगुनाते पाएगे ख़ुद को =>हम को किसके ग़म ने मारा, यह कहानी फ़िर सही ,
हाल फिल हाल एक बात कह दूँ
चमकते चांद को टूटा हुआ तारा बना डाला
मेरी अवारगी ने मुझको आवारा बना डाला ॥
आज एक पोलिटिकल प्रेस कांफ्रेंस देख कर मुझे लगा कि लोगों को अब चुपके-चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है या कई तो जस्विंदर सिंह के सुर में सुर मिला के नही है रास्ता नहीं है । अभी वो कुछ दोस्त बज़्म में नहीं हैं जो कभी ये गुनगुनाया करते थे ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती थी उन्हें । किस से कहें ? ये अपनी पीडा
तो ठीक है आप किसी भी नीली इबारत पर चटका लगा के गीत/ग़ज़ल सुन लीजिए
दोस्त और दोस्ती पे मर्सिया पड़ने वाले दोस्तों के लिए मुझे दोस्त और दोस्ती की समझ है जो कुछ यूँ समझिए
=>दोस्ताना,याराना,मित्रता सब कुछ चाहे पवित्रता ....वर्ना :
अपने मक़सद के सैकड़ों सलाम होते हैं
काम के आदमी से सबको काम होते हैं ।

हाथों का मिलना ,दोस्ती का संकेत तो है खूँ की रफ़्तार हाथों से समझ लेता हूँ
किसे कितना वज़न देना है मुझको
नाप रफ़्तार ऐ खूँ ,दिल को बता देता हूँ

7 टिप्‍पणियां:

  1. डाक्टर साहब और मित्र बाबू बाल किसन का आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. मिरज़ा मुकुल साहब, वाह भाई, वाह!आप का मैं तहे दिल से शुक्रग़ुज़ार हूं । http://swarsrijan.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. मेराज साहेब
    नमस्कार
    सच आप जैसे लोगों की वज़ह से
    संगीत साहित्य ज़िंदा था है और रहेगा
    मिर्जा मुकुल को भी अच्छी पोस्ट का शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  5. समय का चक्र जिस गति से घूमता है उस गति से भी तेज़ देश के सामाजिक राज़नैतिक आध्यात्मिक पारिवारिक पर्यावरण की गति नज़र आ रही है इसका मायना निकाले तो तय है कि हमारी इच्छाए -सुपर वैल्यू को तलाशती सुपर सोनिक होने की कोशिश में लगीं हैं .
    आबो हवा ही कुछ ऐसी है कई-कही,कई-अनकही बातें हैं जो आदम जात को बेनकाब करती है उसे समझाने की ज़्यादा ज़रूरत नहीं
    गीत बड़ा सहज माध्यम है उजागर करने के लिए टिप्पणी के लिए अशेष आभार शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!