मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
सुन्दर चित्र, शशिन जी की प्रदर्शनी हमने भी आयोजित करवाई थी.
bhai khoob aap jamkar kaam kar rahe hain.aapka blog nisandeh zara hatkar hai.http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/http://hamzabaan.blogspot.com/http://saajha-sarokaar.blogspot.com/
I AM AGREE WITH SHAHROZ JEEMUKUL JE BADHAI HO
कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !! बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के ! सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!
सुन्दर चित्र, शशिन जी की प्रदर्शनी हमने भी आयोजित करवाई थी.
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