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25 अग॰ 2008

मैं तुम्हारा आख़िरी ख़त

एक
मैं तुम्हारा आख़िरी ख़त जाने किसके हाथ आऊं
तुम पढो इक बार मुझको इक नया संचार पाऊं !
सौंपना चाहो मुझको सौंप दो पीडा का सागर
मैं उसे मथ भेज दूंगा काढ़ के अमिय-गागर...!!
दो

स्वप्न प्रिया
मैंने भी देखे हैं सपने
चांदनी से सपने…..
क्या पूरे होंगे कभी?
मुझे नहीं मालूम
फिर भी मेरा हक है
सपने देखने का
वो सपना जो तुमको
मुझसे मिलाता है
पूरा ही तो है
कौन कहता है स्वप्न पूरे नहीं होते
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल

5 टिप्‍पणियां:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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