मन का पंछी
मन का पंछी खोजता ऊँचाइयाँ,
और ऊँची और ऊँची
उड़ानों में व्यस्त हैं।
चेतना संवेदना, आवेश के संत्रास में,
गुमशुदा हैं- चीखों में अनुनाद में।
फ़लसफ़ों का ,
दृढ़ किला भी ध्वस्त है।
मन का पंछी. . .
कब झुका कैसे झुका अज्ञात है,
हृदय केवल प्रीत का निष्णात है।
सुफ़ीयाना, इश्क में अल मस्त है-
मन का पंछी. . .
बाँध सकते हो तो बाँधो,
रोकना चाहो तो रोको,
बँधा पंछी रुका पानी,
मृत मिलेगा मीत सोचा,
उसका साहस और जीवन
इस तरह ही व्यक्त है।।
मन का पंछी. . .
बहुत ही खुब्सुरत भाव, सुन्दर कविता के लिये आप का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंहिन्दी में नियमित लिखें और हिन्दी को समृद्ध बनायें.
हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
-समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/
bahut hi achchi abhivyakti . badhai
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