भाई ......जी
सादर-अभिवादन
आपकी चर्चा बांच के लगा की आप अल्ल सुबह ही ले लेतें है.. ब्लॉग की मदिर मदिरा ....?
भाई आप वाकई बड़े जोरदार असरदार लेखन क्षमताओं के धनी हैं ।
मित्र आप को याद होगा "सूर-सूर तुलसी शशि ...!" पर क्या करें आज कल खद्योत भी नेनो टेक्नोलोजी से बने टेल लेम्प अपने दक्षणावर्त्य में चिपकाए घूम रहे हैं और लोग भ्रमित हैं कि सूरज है । भैया पूजा-पाठ के बाद ज़रा आत्म-चिंतन हो जाए "नर्मदे हर हर "
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सभी भक्तगणों को बाबा का आशीर्वाद ! सूचना मिली है कि आज की चर्चा को पढकर हमारे कुछ भक्तों की भावनाएं आहत हुई हैं . महाभारत से जो काल्पनिक प्रसंग लिया गया उसके बारे में आपत्तियाँ पाकर बाबा को पूरा विश्वास हो गया है कि कहीं कुछ गडबड है . अन्यथा उस प्रसंग पर आपत्ति लायक कुछ है नहीं . रही बात 'डबलपुर' के विषय पर लिखी गई कविता की, तो उसको कवि ने एक काल्पनिक शहर 'डबलपुर' के बारे में लिखा है . यदि ध्वनिसाम्य के कारण हमारे 'जबलपुर' निवासी कुछ भक्तों को ठेस पहुँची तो उसके लिए हमें खेद है . इस बारे में हो सकता है कि धवलपुर , नवलपुर , और सबलपुर आदि अन्य ध्वनिसाम्य वाले शहरों के निवासियों को भी आपत्ति हो उनके लिए भी एडवांस में खेद है . बाकी तो गुसाईं जी लिख ही गए हैं : " जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरति देखी तिन तैसी " फिर भी एक बात पर तो सभी सहमत होंगे कि कोई शहर छोटा या बडा नहीं सभी का अपना महत्व है . और किसी शहर में पैदा होना चूँकि किसी के हाथ में नहीं इसलिए यह कोई घमण्ड करने लायक बात नहीं . जिन लोगों ने इस मुद्दे पर अपने विचार रखे वे बधाई के पात्र हैं ।
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आप के उपरोक्त रक्तवर्णीय स्पष्टीकरण में भी एक अजीब सी बैचेनी नज़र आई है। भईया आत्म-चिंतन का विषय है आप मेरे छोटे भाई सद्रश्य दिखा रहे हैं अत: आपको बता दूँ कि साहित्य की विधा में चिट्ठाकारिता का इतिहास आने वाले समय में ऐसा दर्ज हो कि आप को सभी सम्मान से स्मरण करें और आप अपने आप में इन दिनों की सुंदर यादों के ज़रिये सुखी हों ।
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कभी कभी कमसिनी के पाप बुजुर्गियत में मुंह आए अपमानित करते हैं । इस बात का आपसे कोई सम्बन्ध है या नहीं मुझे नहीं मालूम पर इतना जानता हूँ कला हिंसक नहीं होती और साहित्य की धार तलवारी नहीं होती .... वो तो रेवा,सतलज ब्रह्मपुत्र,गंगा की धार सी होती है। अत: आपका सृजन आपका ओज बढाए मेरी कामना है।
रहा जबलपुर को परिभाषित करना सो मित्र : बकौल घनश्याम चौरसिया "बादल"-'खदानों के पत्थर जो अनुमानते हैं मेरे घर की बुनियादें वो जानतें है ।
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आपने मेरे और महेंद्र मिश्र के बीच की किसी युद्ध की आहट सुनी और फ़िर आप का युद्ध के प्रति आकर्षण हम सभी ने जाना आल्हा तक लिख मारी ।
सच कहूं आपको पीड़ा होगी .... तो सुनिए :-
मेरी भाई मिश्र से न तो रंजिश थी न है न रहेगी । मसला कुल इतना था कि वे मीत में बीमार होने के कारण न आ सके और मैंने उनसे न आने पर प्यार भरी तकरार की जिसे "रार" माना गया जबकि वह इकरार था ।
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आप ने आल्हा लिखी अच्छा लगा कि आप "माइंड ब्लोइंग माहिया "के दौर में परम्परा के पालक हैं किंतु विषय वस्तु का विषाक्त होना कहाँ तक लाजिमी है मित्र । आप में उर्जा है उसे सृजनात्मक बनाएं विध्वंशात्मक न होने देन
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मित्र आप बेर क्यों कह रहें हैं अपने आप को आप भी केले का वृक्ष बनिए कितना मान मिलता है आपको मालूम ही है ।
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आशा है विवेक भाई अब "इन अपमान कारक टिप्पणियों पर पुन:विचार करेंगे
चलते-चलते
हम सभी डबलपुरिया ब्लॉगर, यह मिलकर घोषित करते हैं ।
है खास हमारा ही दर्ज़ा, बाकी सब पानी भरते हैं ॥
कुछ पूर्वजन्म में पुण्य किये, इसलिए डबलपुर में जन्मे ।
जो जन्मे हैं अन्यत्र कहीं, है पाप भरा उनके मन में ॥
पापियों करो कुछ पुण्य आज, सुर मिला हमारे ही सुर में ।
तुम साड्डे नाल रहोगे तो, है अगला जन्म डबलपुर में ॥
वन्दे मातरम सुनाते तो, फिर भारतीय ही हम रहते ।
होता है उससे धर्म भृष्ट, इसलिए नर्मदे हर कहते ॥
इस ब्लॉगजगत में शहरवाद, का जहर मिलाया है हमने ।
नर्मदा हमारे ही बल से, बहती न दिया उसको थमने ॥
तुम भारतीय गंगू तेली, हम राजा भोज कहाते हैं ।
हम राज ठाकरे के ताऊ, आमचा डबलपुर गाते हैं ॥
है खास हमारा ही दर्ज़ा, बाकी सब पानी भरते हैं ॥
कुछ पूर्वजन्म में पुण्य किये, इसलिए डबलपुर में जन्मे ।
जो जन्मे हैं अन्यत्र कहीं, है पाप भरा उनके मन में ॥
पापियों करो कुछ पुण्य आज, सुर मिला हमारे ही सुर में ।
तुम साड्डे नाल रहोगे तो, है अगला जन्म डबलपुर में ॥
वन्दे मातरम सुनाते तो, फिर भारतीय ही हम रहते ।
होता है उससे धर्म भृष्ट, इसलिए नर्मदे हर कहते ॥
इस ब्लॉगजगत में शहरवाद, का जहर मिलाया है हमने ।
नर्मदा हमारे ही बल से, बहती न दिया उसको थमने ॥
तुम भारतीय गंगू तेली, हम राजा भोज कहाते हैं ।
हम राज ठाकरे के ताऊ, आमचा डबलपुर गाते हैं ॥
काहे भाव देते हो भाई?
जवाब देंहटाएंअसल में पीछे से कोई ठनपुरिया उकसा कर मौज ले रहा है, पर्सनल खुन्नस में चिठ्ठाचर्चा का चिथड़ाचर्चा बना डाला है।
चर्चा मे आने के लिए कुछ भी करेगा ,के सिद्धांत को अपनाने वालो की चर्चा करके आप उस विधा को बढावा दे रहे है . हमारे यहाँ कहावत है ज्ञानी चलते है बोलने वाले बोलते है .
जवाब देंहटाएंयह क्या हो रहा है? यह क्या हो रहा है?
जवाब देंहटाएंSharma ji
जवाब देंहटाएंkuchh naheen
sab kuchh yoon hee
ho jaataa hai koi
kar thode rahaa hai
धीरू भाई
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सही कहा और सहमत हूँ आपने किंतु इनको एक बार समझाना ज़रूरी
है.
रजनीश ने -"कुंठा को भली तरह परिभाषित किया है". कुछ लोगों की सोच में व्यापी
नकारात्मकता अधो पतन का कारण है
गिरिश भाई
जवाब देंहटाएंयह देश है वीर जवानों का..
अलबेलों का, मस्तानों का...
-बस्स!!!
प्यारे मुकुल भाई, आजकल विश्व भर में "अ"विवेक नाम उल्टे घड़े बिक रहे हैं, पानी व्यर्थ बहने की संभावनाएं अधिक हैं। हा हा फिर भी हमारी यही दुआ है आपकी कोशिश कामयाब हो। वन्दे मातरम। (नो नर्मदे हर प्लीज़ बाबा रामराम को पसंद नहीं।) हा हा
जवाब देंहटाएंभाई अज्ञातानंद जी
जवाब देंहटाएंयही वह नागफनी है जिसे सब फनी
[वो ख़ुद भी] समझ बैठे थे
समीर जी ने कह दिया न
यह देश है वीर जवानों का..
अलबेलों का, मस्तानों का...
अब बवाल जी
"मेरी और से गड़ा गुप चिड़ा चुप"
ओके धीरू जी अतुल शर्मा जी अब एक पोस्ट पर्याप्त है
अब नहीं होगा जो हो रहा था