20 फ़र॰ 2009

आखिरी पंक्ति बवाल पूरा करेगे

माना कि मयकशी के तरीके बदल गए
साकी कि अदा में कोई बदलाव नहीं है..!
गर इश्क है तो इश्क की तरहा ही कीजिये
ये पाँच साल का कोई चुनाव नहीं है ..?
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गिद्धों से कहो तालीम लें हमसे ज़रा आके
नौंचा है हमने जिसको वो ज़िंदा अभी भी है
सूली चढाया था मुंसिफ ने कल जिसे -
हर दिल के कोने में वो जीना अभी भी है !
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यूँ आईने के सामने बैठते वो कब तलक
मीजान-ए-खूबसूरती, बतातीं जो फब्तियां !
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10 टिप्‍पणियां:

  1. अभी तो इतने में ही मजा आ गया..अब बवाल पूरा करें तो दूना हो. बधाई.

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  2. अरे तो कहाँ हैं बवाल साहब उन्हें बुलाया जाए जरा........आखिरी पंक्तियाँ उनके इंतजार में हैं..."

    Regards

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  3. आदरणीय मुकुलजी, अकेले आपका हुक्म होता तो कुछ हीला-हवाली भी कर लेते मगर यहाँ तो आपने आदरणीय सीमाजी का फ़रमान भी चस्पा करा दिया। हा हा और सील ठप्पा लाल साहब का। अब टालना नामुमकिन है। मगर ज़रा वक्त अता किया जाए। हा हा। आइने का मुआमल: है ना।

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  4. वाह भाई गिरीश जी जब बिना बवाल के ये हाल है तो बवाल का इन्वाल्वमेंट कैसा होगा। जल्द बुलाइए यार उन्हें। इंतज़ार कितना करवाओगे ?

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  5. समीर जी,सीमा जी,महक जी,शशिकांत जी .नहीं ख़ुद बवाल भी थार ठिठक के सोच रहे है
    बकौल बवाल
    "लोग ठिठके, ठहर सोचने ये लगे !
    किसने तूफ़ाँ को छेड़ा है पुरवाई में ?? "
    बाक़ी सनेही जन समीर जी और शशि जी की इस बात से सहमत
    हैं की :-
    बिना बवाल के ये हाल है तो बवाल का इन्वाल्वमेंट कैसा होगा..?
    यानी कोई लफडा किया बवाल ने तो "............" आएगा
    नर्मदे हर .......!!
    हर हर गंगे....!!

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  6. पहले बवालजी द्वारा की गई 'समस्‍या पूर्ति' पढी, फिर आपकी रचना। सुन्‍दर जुगलबन्‍द रही।

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  7. यानी कि:- "बैरागी मन भीगे क्यों न
    ब्लॉगन-बारिस बहुत तेज है...
    अन्तिम पाठ बिसनु जी बांचें
    सोच रहे थे कवर पेज है ..?
    हा हा हा
    सादर आभार सहित

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  8. बहुत सुंदर है सलाम आपकी ग़ज़ल को और आपको भी और बबाल जी जो इसे पूरा किया उसको पढ़ कर भी आनंद आ गया

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!