7 अप्रैल 2009

समीर कृत बिखरे-मोती :मित्रों के बीच

तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर नीड़ बनाना जारी है
मक्कारों की आँख लगी है , तूफानों की बारी है !
ऐसे ही सवाल टांक देगी समीर जी की कृति "बिखरे मोती "
फिलहाल आप
को देख सकतें है

4 टिप्‍पणियां:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!