5 जून 2009

"बन्दर चश्मा क्यों नहीं लगाते"

बैठक का एक दृश्य


मेरे इस सवाल पर ठहाकों का होना लाजिमी था.पर्यावरण की रक्षा के लिए मेरे कार्यक्षेत्र में कुछ सिखाना है यह सोच कर एक संकल्प लिया था जो अब भी जारी है . सूचना के लिए बता दूं कि मेरे मातहत 11 सुपर्वाइज़र के अधीन 272 आंगनवाडी केंद्र हैं अपने प्रथम परिचय में जब आंगनवाडी-कार्यकर्ताओं से पूछा :-""बन्दर चश्मा क्यों नहीं लगाते ?" {बाल - विकास }
प्रशासनिक भय वश हंसीं तो नहीं ये महिलाएं लेकिन उनके चेहरे के भावों से ज़ाहिर हो गया कि मेरे मूर्खता पूर्ण सवाल का ज़वाब सिर्फ और सिर्फ हंसी ही है , जो डर से निकल नहीं पा रही .जब हम हँसे तो सुपर्वाइज़र हँसने लगीं फिर क्रमबद्ध रूप से कार्यकर्ता और फिर उनकी सहायक यानी सहायिकाएं ...!
फिर हमने दूसरा मूर्खता पूर्ण सवाल किया कि "तुलसी" घर में क्यों लगाईं जाती है...?
इत्ती सी बात का ज्ञान मुझे नहीं है जानकार फुसफुसाहट के बीच एक थोडी ऊँची आवाज सुनाई दी :"पूजा के लाने और काय ?"
वो आवाज़ पूरी सुनाई देती तो यह होता अगला भाग....."इत्ती सी बात नंईं जानता अधिकारी बनके आया है हमारा !"
बस इन्हीं बेवकूफी भरे सवाल से शुरू बैठक का सिलसिला जब रवां हुआ तो सबको समझ आया की "जो जितना करीब है प्रकृति के वो उतना ही स्वस्थ्य और बलवान है,
बन्दर को दृष्टि दोष होना एक मिसाल है "
तुलसी माता अब डाक्टर तुलसी के नाम से भी जानी जातीं हैं मेरी परियोजना मेंइतना ही नहीं सब को मालूम है कि प्रकृति में सबसे अच्छी समझी जाने वाली प्रजाति "मनुष्य-प्रजाति" सबसे ज़्यादा उपयोगी संसाधन का दोहन/उपभोग करके प्रकृति को गंदा करती है......? ""जबकि हमारा भ्रम ये है कि हम पृथ्वी के शुभ-चिन्तक हैं

8 टिप्‍पणियां:

  1. मेने कई बंदर टाइप आदमिओं को चश्मा लगाये देखा है

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  2. टिप्पणी के लिए आभार
    कसम से आज कलेक्ट्रेट में एक नक-चढा ऐसा ही दिख रहा था मुझे
    बाली जी आभार

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  3. प्रश्न विनोदपूर्ण किन्तु गहरी बात, वाह मुकुल भाई।
    लेकिन सर्कस में तो पहनते हुए देखा है।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  4. ईश्वर की असीम कृपा और अनुकंपा|!|

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  5. bahut achii baat uthaayi hai aapne...bandar jis din gharo me palne lagenge sachmuch shayad unko bhi chashma lag jaaye...

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!