Ad

12 जून 2009

क्या आत्म ह्त्या ही एकमात्र उपाय है ?

समयाभाव की वज़ह से नई पोस्ट नहीं लिख पाया सो "I am rethelining this post "

आईये, हम इस सोच की पड़ताल करें कि क्यों आता है ये विचार मन में....? आम जिन्दगी का यह एक सहज मुद्दा है। खुशी,प्रेम,क्रोध,घृणा की तरह पलायन वादी भाव भी मन के अन्दर सोया रहता है। इस भाव के साथ लिपटी होती है एक सोच आत्महत्या की जो पल भर में घटना बन जाती है, मनोविज्ञानियों का नज़रिया बेशक मेरी समझ से क़रीब ही होगा ।
गहरे अवसाद से सराबोर होते ही जीवन में वो सोच जन्म ले ही लेती है ।
इस पड़ताल में मैं सबसे पहले खुद को पेश करने कि इजाज़त मांगता हूँ:-
"बचपन में एक बार मुझे मेरी गायों के रेल में कट जाने से इतनी हताशा हुयी थी कि मैनें सोचा कि अब दुनियाँ में सब कुछ ख़त्म सा हों गया वो सीधी साधी कत्थई गाय जिसकी तीन पीड़ी हमारे परिवार की सदस्य थीं ,जी हाँ वही जिसके पेट से बछड़ा पूरा का पूरा दुनियाँ मी कुछ पल के लिए आया और गया" की मौत मेरे जीवन की सर्वोच्च पराजय लगी और मुझे जीवन में कोई सार सूझ न रहा था , तब ख्याल आया कि मैं क्यों जिंदा हूँ ।
दूसरे ही पल जीवन में कुछ सुनहरी किरणें दिखाई दीं । पलायनी सोच को विराम लग गया।
ये सोच हर जीवन के साथ सुप्तरूप से रहती है।इसे हवा न मिले इसके लिए ज़रूर है ....आत्म-चिंतन को आध्यात्मिक आधार दिया जाये।अध्यात्म नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त या नगण्य कर देता है। इसका उदाहरण देखिये :-
"प्रेम में असफल सुशील देर तक रेल स्टेशन पर गाड़ी का इंतज़ार कर रहा था बेमन से इलाहाबाद का टिकट भी ले लिया सोच भी साथ थी आत्म हत्या की किन्तु अध्यात्म आधारित वैचारिक धरातल होने के कारण सुशील ने प्रयाग की गाड़ी पकड़ी कुछ दिन बाद लौट भी आया और अपने व्यक्तित्व को वैचारिक निखार देकर जब मुझसे मिला तो सहज ही कहां था उसने-"भैया,जीवन तो अब शुरू हुआ है"
"कैसे....?"
"मैं असफलता से डिप्रेशन में आ गया था सोच आत्म हत्या की थी लेकिन जैसे ही मैंने सोचा कि मुझे ईश्वर ने जिस काम के लिए भेजा है वो केवल नारी से प्रेम कर जीवन सहज जीना नही है मुझे कुछ और करना है "
सुशील अब सफल अधिकारी है उसके साथ वही जीवन साथी है जिसने उसे नकार दिया था।
समय की रफ़्तार ने उसे समझाया तो था किन्तु समय के संदेशे को वो बांच नहीं पाया । सुशील पत्नी ,
सहज जीवन,ऊँचे दर्जे की सफलता थी उसके साथ। वो था अपनी मुश्किलों से बेखबर ।
समय धीरे-२ उसे सचाई के पास ले ही आया पत्नी के चरित्र का उदघाटन हुआ , उसकी सहचरी पत्नी उसकी नहीं थी। हतास वो सीधे मौत की राह चल पडा। किन्तु समझ इतनी ज़रूर दिखाई चलो पत्नी से बात की जाये किसी साजिश की शिकार तो नहीं थी वो। शक सही निकला कालेज के समय की भूल का परिणाम भोग रही जान्हवी फ़ूट पड़ी , याद दिलाये वो पल जब उसने बतानी चाही थी मज़बूरी किन्तु हवा के घोडे पर सवार था सुन न सका था , भूल के एहसास ने उसे मज़बूत बना ही दिया । पत्नी की बेचारगी का संबल बना वो . नहीं तो शायद दो ज़िंदगियाँ ...............
मेरे ख़याल से जितनी तेज़ी और आवेग से विध्वंसक-भाव मष्तिष्क में आतें हैं उतनी तेज होती है रक्षात्मक-भाव जो एक कवच सा बना देता है यह सब इतनी तेज़ी से होता है कि समझ पाना कठिन होता है । शरीर की रक्त वाहनियों में तीव्र संचार मष्तिष्क को विचलित कर देता है । हम सकारात्मक विचारों को बेजा मान बैठतें है। और लगा देते हैं छलाँग कुएँ/रेल की पटरी के आगे ...........
" आप क्या सोचतें हैं ......मुझे बताइये ज़रूर ...... वक़्त निकालकर !"
हमारे देश में ही नहीं समूचे विश्व में यही स्थिति है......अध्यात्म के बगैर का जीवन जीना बिना रीड़ का जन्तु ही तो है...?आप देखिये आम जीवन "सिद्धांत-बगैर जीते लोग,पल-पल बदलतीं निष्ठाएं,दोगला आचरण, कमज़ोर का दमन, जैसी बातों की प्रतिक्रिया है "आत्महत्या"....अगर अध्यात्मिकता का आभाव है तो हताशा के सैलाब में आत्महत्या को चुनना स्वाभाविक है....!"

6 टिप्‍पणियां:

  1. यह हमारे समाज के लिये कलंक है, कि लोग हताशा में आत्‍महत्‍या जैसा घृणित कृत्य करते है। परिवार को बुरे दौर में भी साथ रहना चाहिये।

    जवाब देंहटाएं
  2. हमे अपने बच्चो को शुरु से ही हर तरह की परिस्थितियो से लडने की काबिल बनाना चहिये, ओर कठिनाईयो से लडने की, होस्सला ना खोने कीओर जिन्दगी का क्या मतलब है यह सब सीखाना चाहिये, तो हम उस एक क्षण से बच सकते है, ओर आत्महत्या कोई बहादुरी का काम नही एक कायर ही करता है,

    जवाब देंहटाएं
  3. avsad se ubrne ka ak hi rasta hai
    adhyatm.aur mere vichar se sakaratmk soch hi adhyatm hai .

    जवाब देंहटाएं
  4. चिंतन तो सत्य है पर हमें अवसाद और निराशा से संघर्ष की आदत डालनी होगी .

    जवाब देंहटाएं

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

Free Page Rank Tool

यह ब्लॉग खोजें