बीते दिन पितृ दिवस के उपलक्ष्य पर बासी पोस्ट सादर प्रस्तुत है पर यह बासी इस कारण नहीं होगी क्योंकि हमारे देश में पिता को केवल एक दिन नहीं वरन पूरे बरस मान्यता देने कि परम्परा है....
- ये सही है कि बाबूजी की बीमारी(प्रोस्टेड का आपरेशन) सर्वथा हमारी पारिवारिक समस्याहै। इसकाअर्थ यह की हम सभी शीघ्र उनके स्वस्थय होने तक उन सारी व्यवस्था से दूर होजाएँ जो रोजी रोटी के परिपेक्ष्य में ज़रूरी हैं...... यह सभी के लिए ज़रूरी होती है। किंतु पथरीले लोग पथरीली व्यवस्था सिर्फ़ आत्मकेंद्रित सोच आपको अपने पिता की सेवा में जब बाधक बनती दिखाई दे तो आपको यकीन हो जाएगा कि कमीनगी और बाहरी वातावरण में गहरा अंतर्संबंध है।
- समय नहीं था पिछले गुरूवार को सतीश भैया ने बताया कि भाई, अब आपरेशन बहुत ज़रूरी है। सो हम सभी इस जुगत में मसरूफ होना चाहते थे कि बाबूजी का आपरेशन हर हाल में सोमवार यानी 15जून-09 तक हो ही जावे, तभी देर शाम सूचना मिली की मुझे भोपाल जाना है। मन मसोस कर जन्मदाता और ईश्वर दौनो से ही मानसिक क्षमा मांग कर "सरकारी-मिशन" को निकल पडा। अपने 10अधिकारी मित्रों के साथ .......... बॉस तो थे ही .... साथ में ।दिमाग में बाबूजी की तखलीफें – सरकारी फरमान बारी बारी से हावी हो रहे ।
- उधर मेरे बड़े भाई साहब जो रेल विभाग के अधिकारी हैं का सेल फून कितना भी रिरियाया भाई साब बिल्कुल निष्ठुर भाव से देखते रहेपर उठाया नहीं किसी भी मकसद परस्त का फोन ....!
- मेरे एमिदिएट बॉस को मालूम था सो बेचारे किसी भी तरह से भी काम काज निपटा रहे थे किंतु कुछ ऐसे भी थे या थीं जो अपने अलावा अन्य सभी को शून्य समझते जैसे एक फोन मिला : "कैसे हैं बिल्लोरे जी ""ठीक हूँ,मैडम, पापा बीमार हैं हस्पताल में हैं...!""बमुश्किल उनकी जुबां से न चाहते हुए भी उनको पापा के हाल चाल पूछने पड़े ज्यों ही हमने कहा पहले से ठीक है ! मेरा इतना कहना था की मेडम ने दन्न से मुझे एक काम सौंपने की हरकत कर दी " आप मारें या जियें आप के बाप का जो भी हाल हो मेरा काम सर्वोपरि ?
- कमीनगी की हद तो तब पार कर दीं गईं जब श्रीमती "क" ने काम की पोज़िशन जानने अपने मतकमाऊ पति से लगातार फोन करवारहीं थीं .......... तब बाबूजी का बीपीलो हो जाने की वज़ह से हम भाई डाक्टर साहब से चर्चारत थे...फुर्सत होकर मैंने मेडम "क" के फोन पर काल बैक किया..उधर से आवाज़ आई जो किसी भारी भरकम बक्से के खुलने जैसी थी : "बिल्लोरे वो क्या हुआ ? "{मेडम का पति था सो ब्यूरोक्रेटिक शिष्टाचार के मद्दे नज़र वो "सर" हुआ } हम बोले : आपका {मेडम का } काम करने में असमर्थ हूँ । मेरी प्रियोरिटी मेरे बाबूजी हैं न की आपका काम । उधर से आवाज़ आई "ठीक है तुम अपने पापा को देखो उसमक्कार आवाज़ में इस बार धमकाने वाला अंदाज़ था "
- कुल मिला कर आज आदमी की ज़िन्दगी में खासकर सिस्टम के छोटे पुर्जों की दुर्गति इसी तरह की जाती है खासकर राज्य सरकारों के ब्यूरोक्रेटिक-सिस्टम में ।
- आप कहीं अफसर हों तो अपने अधीन किसी अफसर या कर्मचारी कि दुआ लीजिए ऊपर लिखे ललिता पवारी हादसे को अंजाम न दें ।
सही कहा आपने.
जवाब देंहटाएंपितृ दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
सत्य कथन .
जवाब देंहटाएंSameer bhai
जवाब देंहटाएंDr. Mishra
Apa kaa aabhaaree hoon
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