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2 जुल॰ 2009

कबीरा सच में तुम बाज़ार में हो


सारी दुनिया बाज़ार हो गई है । कबीरा एक यही एहसास होता है मुझे की हम सभी बाज़ार में खड़े हैं । तुम अकेले नहीं मैं तुम हम सब है खड़े इस बाज़ार में । देखो न राखी सावंत को जो तुम्हें टी वी पर स्वयंबर के लिए आमंत्रित कर रही थी आज देखो लड़कों की कतार लगी है । बेचारी राखी सावंत का बेचारा अतीत एन डी टी वी इमेजिन को व्यूअर दे रहा और मिल रहे हैं मेन्फोर्स-कंडोम / टायलेट क्लीनर के एड ।इधर औरतें राखी के दर्द पर कितनी दु:खी हैं .....कबीरा तुम क्या जानो ?ये देखो न राखी को परिवार से मिली उपेक्षा का दर्द कितना उभारा हुआ है। उसके इसी दर्द हाँ पारिवारिक उपेक्षा को इमेजिन ने समझा और शुरू हुई स्वयंबर की कहानी देखिये कौन सा बाबला इस बावली का पति बनता है ज़ाहिर है मिका तो नहीं होगा जिसके गले में अपनी राखी सावंत ये वर माला डालेगी कुल मिला कर भावनाओं का बाज़ार जो कड़क नोट उगलता है कबीरा तुम वहीं उसी बाज़ार में खड़े हो

6 टिप्‍पणियां:

  1. सच!! क्बीरा का प्लेसमेन्ट भयभीत करता है बाजार में.

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  2. कबीरा तुम क्या जानो ...आपने एक दुखती रग पर हाथ रखा है ...बस कबीरा को देखने के लिए यही बच्i था ...हालत काबू मैं नही हें और औरत जिस जगह है वहां से कभी अपनी सही जगह लौटेगी या नही ...नही मालूम

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  3. लानत के सिवा ओर कया कहुं, अजीब सा लगता है.

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  4. विधु जी
    सादर-प्रणाम
    वास्तव ..काबू नहीं हैं
    के लिए आभार जी
    राज़ दादा जी का कथन
    "लानत के सिवा ओर कया कहुं, अजीब सा लगता है." सटीक है
    समीर भाई की चिंता जायज़ है मिश्र जी आभार
    कुलमिला कर अब कबीरा "बाज़ार में" बिकने को खडा है जी

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  5. मुकुल जी.
    आज नैतिक मूल्यों को ताक पर रख कर केवल व्यावसायिक नजरिये को महत्त्व देना आज का चलन बन गया है, यह केवल टी वी, सिनेमा अकेले की बात नहीं है, यह मारे चारों ओर हो रहा है, इसे ही आज के बुद्धिमान ग्लोब्लाईजेसन कहते हैं.
    आज इसके फायदे और नुकसान का अंदाजा हम सभी लगा सकते हैं.
    हम भारतीयों की संस्कृति का पाश्चात्य अन्धानुकरण कितना फायदेमंद है और कहाँ ले जाएगा.. अब हम चाह कर भी पीछे नहीं लौट सकते. बस हमें स्वीकारने के लिए ही चतुर्दिक दबाव है. वैसे भी चंद सुधारक क्या कर पायेंगे ,ये मेरी समझ के बाहर की बात है.
    शायद सरकार में चिन्तक कम स्वार्थी ज्यादा बैठे हैं, इनसे हम कितनी उम्मीद करें ये स्वतंत्रता के समय से देखते आ रहे हैं. इनके एक सूत्रीय कार्यक्रम होते हैं, मलाई खाना और कुछ छाछ जनता में बाँटना, चाहे तो आप सर्वे कर लें ९५% नेता चुनाव जीतने के पहले कितने फटेहाल थे और बाद में कितने मालामाल हो गए. क्या ये निरीक्षण - परीक्षण और जाँच के विषय नहीं हैं.
    अब हम आज राखी जैसी कलाकार अकेले को लेकर क्या हम कुछ कर पायेंगे ,
    खैर मैं तो भाई मुकुल जी के बहाव में ही जाने कितनी दूर बह गया और विषयान्तर्गत हो गया.
    - विजय

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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