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28 सित॰ 2009

ब्लागवाणी का ये कैसा फ़ैसला

ब ब्लागवाणी को पीछे छोडकर आगे जाने का समय आ गया है इस  टिप्पणी के साथ ब्लागवाणी टीम ने अपाने आप को ब्लागर्स से दूर कर लिया . इस संकलक ने आगे कहा :-"इसलिये आज जरूरी है कि ब्लागवाणी पसंद और उसमें बनाये गयी सुरक्षा तकनीकों के बारे में बताया जाये क्योंकि इसकी क्रेडिबिलिटी से उन सब ब्लागों की क्रेडिबिलिटी जुड़ी है.............................................................................................................
दो सालों में आप सबके हार्दिक सहयोग मिला इसके लिये बहुत आभार. अब ब्लागवाणी को पीछे छोडकर आगे जाने का समय आ गया है."
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ब्लॉगवाणी के संचालकों से एक विनम्र आग्रह है की यह सही है "कि ब्लागवाणी चलाना हमारी मजबूरी कभी न थी बल्कि इस पर कार्य करना नित्य एक खुशी थी  किन्तु आपके अवदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता. आप प्रतिदिन एक सूची मात्र जारी कीजिए ...... ये नंबर वन की दौड़ ........... आज की स्थिति में न सिर्फ आपकी वरन आम ब्लॉगर की नज़र में भी ठीक न थी. न है...... हो सकता है कि मुझसे कई मित्र असहमत होंगे किन्तु मैं कहे देता हूं जो मेरे मन में है -"जिसे आज गर्म जोशी से स्वीकारा सराहा और पसंद किया जाता है उसे कल कोई चर्चा में भी लाए इसकी कोई गारंटी नहीं अत: मेरी राय  है संकलकों को अपना काम जारी रखना चाहिए...........टिकेगा वही जो प्रभावशाली होगा ...... कुम्हडे के फूल न टिके हैं न टिक सकते हैं " अगर ब्लागवाणी इन पसंद जुगाडू लोगों से आजिज़ आ कर काम बंद करती है तो पुन: विचारण का अनुरोध स्वीकारिए ............
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 भारतीय  ब्लागिंग के इतिहास की इस सबसे दु:खद "घटना" के लिए मैं अब नि:शब्द हो रहा हूँ . मित्रों सभी मिलकर कुछ अच्छा करें शायद वे मान जाएं ...... ब्लागिंग के लिए वे क्या हैं पहचान जाएं  
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11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दुखद. ऐसा लगा जैसे कोई अपना रूठ कर छोड़ कर जा रहा हो.

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  2. यह वैसा ही है जैसे किसी से कहा जाए कि भाई आप के पेंट की फ्लाई की चैन खुली रह गई है और वह आत्महत्या कर ले।

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  3. दुखद घटना...


    ब्लॉगवाणी से निवेदन है कि वो अपने फैसले पर पुनर्विचार करे

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  4. सुबह चाय पीते समय अखबार की आदत जैसे ही कम्प्यूटर खोलते ही ब्लॉगवाणी ओपन करने की आदत सी हो गई है। अब क्या करें?

    हमने तो सोचा था कि भविष्य में ब्लॉगवाणी पसंद अंग्रेजी डिग जैसे ही हिन्दी ब्लोग की लोकप्रियता का मानदंड बन जाएगी परः

    मेरे मन कछु और है कर्ता के कछु और ....

    Man supposes God disposes .....

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  5. 'अब ब्लागवाणी को पीछे छोडकर आगे जाने का समय आ गया है."
    ---@दुखद फैसला..ब्लॉगवाणी से निवेदन है कि वो अपने फैसले पर पुनर्विचार करे!

    -विजयदशमी की शुभकामनाएं!

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  6. .
    .
    .
    मैं सहमत हूं सभी टिप्पणीकारों की भावना से...

    लगाये गये आरोप गलत थे तथा आरोप लगाने वाले के तकनीक के प्रति अज्ञान को जाहिर करते थे।

    "ब्लागवाणी चलाना हमारी मजबूरी कभी न थी बल्कि इस पर कार्य करना नित्य एक खुशी थी. पिछले दो सालों में बहुत से नये अनुभव हुए, मित्र भी मिले. उन सबको सहेज लिया है, लेकिन अब शायद आगे चलने का वक्त है. तो फिर अब हम कुछ ऐसा करना चाहेंगे जिससे फिर से हमें मानसिक और आत्मिक शांति मिले."

    यहां पर यह भी कहूंगा कि मात्र हिन्दी के प्रति प्यार के चलते मिशनरी भावना के चलते यदि ब्लॉगवाणी जैसे प्रयास होते हैं तो किसी के लिये भी लम्बे समय तक उसे चलाना मुश्किल होगा, जेबें चाहे कितनी गहरी हों...

    हिन्दी ब्लॉग जगत अभी अपने शैशव में है पर यह अपार संभावनाओं युक्त युवा होगा इसमें किसी को किंचित भी संदेह नहीं होना चाहिये...यह एक बड़ा बाजार भी होगा...और फिर...एक प्रॉफिटेबल हिन्दी एग्रीगेटर जो प्रोफेशनली चले...शीघ्र ही होगा हम हिन्दी वालों के पास

    अलविदा ब्लॉगवाणी! दो वर्ष का यह साथ बेहद फलदायी रहा...
    ब्लॉगवाणी के संचालकों को उनके सुखद भविष्य हेतु शुभकानायें...

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  7. इस निर्णय पर पुनर्विचार किया जाना अपेक्षित है!!!!!!

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  8. आप को ओर आप के परिवार को विजयादशमी की शुभकामनांए.
    बिन ब्लांग बाणी के सब सून

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  9. बजा फ़रमाया आपने मुकुल जी। ब्लॉगवाणी का टंकी पर चढ़ जाना कुछ अच्छा नहीं लग रहा।

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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