मेरे सपने साथ ले गए
दुख के झंडे हाथ दे गए !
बाबूजी तुम हमें छोड़ कर
नाते-रिश्ते साथ ले गए...?
काका बाबा मामा ताऊ
सब दरबारी दूर हुए..!
बाद तुम्हारे मानस नाते
ख़ुद ही हमसे दूर हुए.
अब तो घर में मैं हूँ माँ हैं
और पड़ोस में विधवा काकी
रोज़ रात कटती है भय से
नींद अल्ल-सुबह ही आती.
क्यों तुम इतना खटते थे बाबा
क्यों दरबार लगाते थे
क्यों हर एक आने वाले को
अपना मीत बताते थे
सब के सब विदा कर तुमको
तेरहीं तक ही साथ रहे
अब हम दोनों माँ-बेटी के
संग केवल संताप रहे !
दुनिया दारी यही पिताश्री
सबके मतलब के अभिवादन
बाद आपके हम माँ-बेटी
कर लेगें छोटा अब आँगन !
दुख के झंडे हाथ दे गए !
बाबूजी तुम हमें छोड़ कर
नाते-रिश्ते साथ ले गए...?
काका बाबा मामा ताऊ
सब दरबारी दूर हुए..!
बाद तुम्हारे मानस नाते
ख़ुद ही हमसे दूर हुए.
अब तो घर में मैं हूँ माँ हैं
और पड़ोस में विधवा काकी
रोज़ रात कटती है भय से
नींद अल्ल-सुबह ही आती.
क्यों तुम इतना खटते थे बाबा
क्यों दरबार लगाते थे
क्यों हर एक आने वाले को
अपना मीत बताते थे
सब के सब विदा कर तुमको
तेरहीं तक ही साथ रहे
अब हम दोनों माँ-बेटी के
संग केवल संताप रहे !
दुनिया दारी यही पिताश्री
सबके मतलब के अभिवादन
बाद आपके हम माँ-बेटी
कर लेगें छोटा अब आँगन !
इस गीत मे छिपी वेदना अत्यंत मुखर है ।
जवाब देंहटाएंबहुत भावुक कर दिया इस रचना ने. कितना बड़ा सच है.
जवाब देंहटाएंआप दौनों का आभारी हूँ
जवाब देंहटाएंअब इसमे बाबू जी के स्थान पर
बापूजी लिख दूं तो एक नई बात
उभरती है