दोहा सलिला
संजीव 'सलिल'
मन वृन्दावन में बसे, राधा-माधव नित्य.
श्वास-आस जग जानता, होती रास अनित्य..
प्यास रहे बाकी सदा, हास न बचता शेष.
तिनका-तिनका जोड़कर, जोड़ा नीड़ अशेष..
कौन किसी का है सगा?, और कौन है गैर?
'सलिल' मानते हैं सभी, अपनी-अपनी खैर..
आए हैं तो छोड़ दें, अपनी भी कुछ छाप.
समय पृष्ठ पर कर सकें, निज हस्ताक्षर आप..
धूप-छाँव सा शुभ-अशुभ, कभी न छोडे साथ.
जो दोनों को सह सके, जिए उठाकर माथ..
आत्म-दीप बालें 'सलिल', बन जाएँ विश्वात्म.
मानव बनने के लिए, आये खुद परमात्म..
सकल जगत से तिमिर हर, प्रसरित करें प्रकाश.
शब्द ब्रम्ह के उपासक, जीतें मन-आकाश..
*******************************
Ati sundar
जवाब देंहटाएं