आज का गीत:
संजीव 'सलिल'
पीले पत्तों की
पौ बारह,
हरियाली रोती...
*
समय चक्र
बेढब आया है,
मग ने
पग को
भटकाया है.
हार तिमिर के हाथ
ज्योत्सना
निज धीरज खोती...
*
नहीं आदमी
पद प्रधान है.
हावी शर पर
अब कमान है.
गजब!
हताशा ही
आशा की फसल
मिली बोती...
*
जुही-चमेली पर
कैक्टस ने
आरक्षण पाया.
सद्गुण को
दुर्गुण ने
जब चाहा
तब बिकवाया.
कंकर को
सहेजकर हमने
फेंक दिए मोती...
*
मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
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30 अक्टू॰ 2009
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जुही-चमेली परकैक्टस ने
जवाब देंहटाएंआरक्षण पाया.
सद्गुण कोदुर्गुण नेजब चाहा तब बिकवाया.
कंकर को सहेजकर हमने फेंक दिए मोती...
वर्तमान स्थिति को अच्छी तरह बयान कर दिया है ..!!
सटीक रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही धारदार रचना। मोती फेंके जा रहे हैं और कंकरों को सहेजा जा रहा है। यही दुर्भाग्य है।
जवाब देंहटाएंek behatrin rachna
जवाब देंहटाएंसटीक सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंAti sundar ji
जवाब देंहटाएंजूही चमेली पर कैक्टस ने आरक्षण पाया। क्या बात है सर। बहुत उम्दा बहुत बेहतर।
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