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27 नव॰ 2009

ब्रिगेडियर महेन्द्र मिश्र का हार्दिक स्वागत



आज की सुबह सुहानी थी दोपहर सरकारी दौरे के दौरान माँ नर्मदा के तट पर दोपहर के भोजन का स्वाद ही कुछ अदभुत सा था सुबह 9:00 बजे से लगातार फील्ड पर रहने के दौरान कैमरे का इस्तेमाल कर ही लिया देखिये सुश्री माया मिश्रा एवं सुषमा जी आकाश में जाने क्या देख रहीं थी कि अपनी क्लिक ! जी हाँ बरगी टूर के दौरान मुझे सरकारी रेस्ट हाउस से बेहतर लंच लेने के लिए यही स्थान लगता है. ईश्वर की अनुपम धरोहर को नष्ट करता विकास ये वो ज़गह है जिस स्थान से माँ नर्मदा को अपलक निहारा करता हूँ कदाचित माँ कहती है कि "यहीं बस जा मेरे पास "
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwjuz4SS5qN_66R_FcRg4irw6h-I0NBNXXA4y4ard1hsRv0OcQxZH4bsbLl6oQJHO63OO5AWyIfCOLyn-EX5O1gCHRj3FmVVNgtgqLMwmJVDKYP9o_9FNIdVJcusl-G1p_JKfYfOXg-iM/s1600/Savysachi01.gifइस जगह से कैसा अपना पन हो गया है मुझे यहाँ आते ही स्वर्गीया सव्यसाची की गोद में मिलने वाला सुकून नेह का गुनगुना एहसास जो भौतिक रूप से मुझे अब अगले जन्म तक नहीं मिलने वाला है यहाँ उसका आभास हो ही जाता है. नदी और माँ के बीच अंतर्संबंध समझता मेरा मन सहकर्मियों के अनुरोध को टाल न सका समय की मांग थी कि हम उस जगह को छोड़ें सुश्री मिश्रा के अनुरोध पर बमुश्किल 10 मिनट बाद हम रवाना हुए अगले पाइंट के लिए मन ही मन माँ नर्मदा से फिर आने की बात कह कर हम रवाना हुए . वहां रुकने से मेरे कई काम निपट जातें हैं जैसे उस भूरे कुत्ते से मुलाक़ात हो जाती है जिसे लगभग एक बरस से एकाध नेह निवाल दे देता हूँ कुछ चींटियाँ जिनके लिए रोटिया उपयोगी होतीं है साथ ही माँ से मुलाक़ात यानी यानी अब गूंगे से गुड की मिठास का विवरण नहीं दिया जाता है . ________________________________________________________________________________________



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और ये अपन पता नहीं कब सुषमा जी ने कैमरा क्लिक कर दिया
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का हार्दिक स्वागत है जबलपुर ब्रिगेड पर


शाम ब्रिगेड का पन्ना खोला तो सारे ब्रिगेडियर के अलावा हमारी वरिष्ठ समीर भाई के बाद के और हम सबसे सीनियार ब्लॉगर महेंद्र मिश्र जी आमंत्रण स्वीकार चुके नज़र आए इधर हम अपना मेल इनबाक्स बार बार देख रहें हैं मिश्र जी का मेल चर्चा वाले पन्ने के लिए आता ही होगा. इस बीच खर ये है कि बवाल कल से जो ट्रक लेकर गए हैं बेगानी जी के पास से कपिला जी के पास फिर मंगलूर की एक चर्च में सुसमाचार सुन रहे हैं , शरद कोकासजी विजय तिवारी "किसलय"जी , ठण्ड की वज़ह से रजैया में दुबके ब्लागिंग कर रहें हैं . उधर ब्रिगेडियर महाशक्ति की स्थिति बेहद खराब है पापा जी कहे थे कि इस जन्म दिन के पहले बिहाय देगें किन्तु ब्रिगेड के वीटो के मद्देनज़र "सुदिन" नहीं हो पाया . अस्तु प्रमेन्द्र तुम्हारी बरात जबलपुर में आना तय है . क्यों भाई संजीव सलिल जी ठीक हैं ? जबलपुर में जाडे से बचने हमने दीपक से 'मशाल ' मशाल से अलाव जगा रखे हैं मालूम हुआ है कि रवीन्द्र प्रभात जी की परिकल्पनापर कोई जुगाड़ हुआ तो एकाध जबलपुरिया-ब्लॉग जुड़ेगा वर्ना समीर जी की के बाद जात्रा आगे बढ कर एक जनवरी 2010 को एक दूजे को हेप्प्या न्यू इयर कहता नज़र आयेगा . वैसे आज़कल अलबेला खत्री का मार्केट तेज़ है, उधर एक दम अपने ये मुन्ना सर्किट तेज़ी से आगे निकलते नज़र आ रए हैं ... टपोरी टाइप की बोली का मज़ा ही कुछ और है,
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मुंबई हादसें के शहीदों के पुन्य स्मरण के साथ धार्मिक आतंकवादी आकांक्षाओं के समूल समापन के आव्हान करते हुए इति !
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10 टिप्‍पणियां:

  1. ब्रिगेडियर महेन्द्र मिश्र का हार्दिक स्वागत है जबलपुर ब्रिगेड पर.

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  2. इतनी मेहनत से टिप्‍पणी लिखने के बाद गायब हो गई, लगता है कि टेम्‍पलेट में कुछ दिक्‍कत है।

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  3. श्री महेन्‍द्र जी को ब्रिगेडियर बनने की बहुत बहुत बधाई

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  4. श्री महेन्‍द्र जी को ब्रिगेडियर बनने की बहुत बहुत बधाई....

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  5. भाई,
    बधाई मेरी ओर से भी महेंद्र मिश्र जी को ब्रिगेडियर बनने के एवज में और आपको भी बेहतर पोस्ट हेतु ....

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  6. नेह निनादित नर्मदा, नित देती सन्देश.
    महाशक्ति-कोकास का, सुनें विजय-आदेश..

    ताऊ रहें महफूज़ यदि, थाम मशाल समीर.
    कपिला संग प्रभात में, करें बवाल सुबीर.

    बेगानी दुनिया लगे, अलबेला अभियान.
    सलिल महेंद्र गिरीश का सर्किट खाए पान..

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  7. काय बड्डे .. अरे हम मिश्रा जी से कह रहे हैं आओ भैया .. स्वागत है .. अब जरा ताकत बढेगी ..तो मज़ा आयेगा ।

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  8. पूरी बटालियन को हमारा प्रणाम है जी ..चलिये एक सीमा तो सुरक्षित हो गई ...सारी बटालियन ही जानी पहचानी है ....और ब्रिगेडियर साब तो खासमखास हैं हमरे ....परेड होगी तो हमें भी न्योता मिलबे करेगा ...अईसे नहीं तो दिल्ली के रंगरूट के तौर पर ही सही ..
    धुनवा गा दें ....टैण टैणेन ....
    अजय कुमार झा

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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