Ad

1 नव॰ 2009

हरित-क्रांति

GreenEarth

_____________________________________
कभी ये अपने देश की धरती

हरी भरी लहराती थी
नदी किनारे ,पर्वत घाटी
पवन सुगंध बहाती थी
अब न मिलती शीतल छाया
वन उपवन हो रहे हैं कम
हरित क्रान्ति का बिगुल बजाएं
आओ सब मिलजुलकर हम ..

- विजय तिवारी " किसलय "

7 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक शब्द मंजूषा
    मिश्र जी का भी सादर अभिवादन

    जवाब देंहटाएं
  2. सही आगाज...जगाये हैं अलख हम भी..पेड़ लगाओ धरा बचाओ..अभियान से.लोगो ब्लॉग पर लगा है.

    किसलय जी को साधुवाद!!

    जवाब देंहटाएं
  3. पर्यावरण पै केन्द्रित आपकै कविता बड़ी
    नीक लागि | अनाज कै महिमा समझत
    हौ, बड़ा उत्तम अहै |
    भइय्या हमरे ब्लाग पै कमेन्ट बुन्देली
    माँ कीन करौ |हमरौ ग्यान बढ़े |
    यक बुन्देली प्रेमी का यक अवधी
    प्रेमी कै सलाम ... ...
    धन्नबाद ...........

    जवाब देंहटाएं

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

Free Page Rank Tool

यह ब्लॉग खोजें