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कभी ये अपने देश की धरती
हरी भरी लहराती थी
नदी किनारे ,पर्वत घाटी
पवन सुगंध बहाती थी
अब न मिलती शीतल छाया
वन उपवन हो रहे हैं कम
हरित क्रान्ति का बिगुल बजाएं
आओ सब मिलजुलकर हम ..
- विजय तिवारी " किसलय "
मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
bahut badhiya badhai achchi prastuti .
जवाब देंहटाएंसार्थक शब्द मंजूषा
जवाब देंहटाएंमिश्र जी का भी सादर अभिवादन
सही आगाज...जगाये हैं अलख हम भी..पेड़ लगाओ धरा बचाओ..अभियान से.लोगो ब्लॉग पर लगा है.
जवाब देंहटाएंकिसलय जी को साधुवाद!!
समीचीन रचना
जवाब देंहटाएंवक्त का तकाज़ा
जवाब देंहटाएंवाह भाई साहब
जवाब देंहटाएंपर्यावरण पै केन्द्रित आपकै कविता बड़ी
जवाब देंहटाएंनीक लागि | अनाज कै महिमा समझत
हौ, बड़ा उत्तम अहै |
भइय्या हमरे ब्लाग पै कमेन्ट बुन्देली
माँ कीन करौ |हमरौ ग्यान बढ़े |
यक बुन्देली प्रेमी का यक अवधी
प्रेमी कै सलाम ... ...
धन्नबाद ...........