तेवरी : संजीव 'सलिल'
ताज़ा-ताज़ा दिल के घाव.
सस्ता हुआ नमक का भाव..
मँझधारों-भँवरों को पार
किया, किनारे डूबी नाव..
सौ चूहे खाने के बाद
हुआ अहिंसा का है चाव..
ताक़तवर के चूम कदम
निर्बल को दिखलाया ताव..
ठण्ड भगाई नेता ने.
जला झोपडी, बना अलाव..
डाकू तस्कर चोर खड़े.
मतदाता क्या करे चुनाव..
नेता रावण जन सीता
कैसे होगा 'सलिल' निभाव?.
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मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
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14 नव॰ 2009
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आदरणीय सलिल जी की लेखनी को सलाम माँ शारदे उनकी कलम मे निवास करती हैं बहुत बहुत बधाई । उनकी रचना के लियेमेरी ओर से कुछ कहना उनकी रचना के साथ अन्याय होगा।
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