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14 नव॰ 2009

तेवरी : ताज़ा-ताज़ा दिल के घाव. --संजीव 'सलिल'

तेवरी : संजीव 'सलिल'



ताज़ा-ताज़ा दिल के घाव.
सस्ता हुआ नमक का भाव..

मँझधारों-भँवरों को पार
किया, किनारे डूबी नाव..

सौ चूहे खाने के बाद
हुआ अहिंसा का है चाव..

ताक़तवर के चूम कदम
निर्बल को दिखलाया ताव..

ठण्ड भगाई नेता ने.
जला झोपडी, बना अलाव..

डाकू तस्कर चोर खड़े.
मतदाता क्या करे चुनाव..

नेता रावण जन सीता
कैसे होगा 'सलिल' निभाव?.

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1 टिप्पणी:

  1. आदरणीय सलिल जी की लेखनी को सलाम माँ शारदे उनकी कलम मे निवास करती हैं बहुत बहुत बधाई । उनकी रचना के लियेमेरी ओर से कुछ कहना उनकी रचना के साथ अन्याय होगा।

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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