17 दिस॰ 2009

जाने कहां कहां से गुजरा हूं अब मैं दिल्‍ली पहुंचा हूं (अविनाश

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समय  के साथ साथ कारवां आगे और बड़ा और भी बड़ा हो गया जब अविनाश जी ने ब्रिगेड
का विनम्र आग्रह स्वीकारा आज हम उनके आभारी हैं इस लिए कि व्यस्त  किन्तु थके नहीं होते
अविनाश जी का हार्दिक अभिनंदन है 
उनकी इस पोस्ट के साथ
जबलपुर-ब्रिगेड
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दिल्‍ली से गया था गोवा
रहा 4 दिसम्‍बर तक वहां
फिर छुक छुक बढ़ चला
मुंबई की ओर।

उस मुंबई की ओर
जहां नहीं है समय
किसी के पास
किसी के लिए और
विश्‍वास तो है ही नहीं।

पर ये मिथक अब टूट गया है
इसे ही तोड़ना चाहता था
आखिर तक जूझना चाहता था मैं।

5 दिसम्‍बर शनिवार की दोपहर तक
मुझसे आकर अमिताभ श्रीवास्‍तव मिले
जिनके प्‍यार का वास्‍तव में कोई जवाब नहीं
औरंगाबाद से वे चले आये
मुझसे मिलने की खातिर।

वे मिले ही थे कि
फोन एक और आ गया
फोन ने पहले से
कमल शर्मा बतला दिया

वे भी दिल के धनी हैं
बहुत दूरी से आये थे
और फिर हम तीनों
मनोज गुप्‍ता जी के घर
बैठकर घंटों बतियाये थे।

पहली मुलाकातों में

यूं ही बातों-बातों में
घंटे कई बीत गये

पर विचार अभी तक न रीते थे
विचार रीतते भी नहीं हैं

सदा जीतते भी नहीं हैं।

समय आ गया जाने का
भाव न लें दो आने का
अनिता कुमार को भी आना है
वे भी बस आने ही वाली हैं
पर अमिताभ को पहुंचना था औरंगाबाद
और कमल शर्मा को मजबूरी थी
पर मिट गई खूब सारी दूरी थीं।

निकल लिये हम तीनों
छोड़ने उनको मैं भी साथ चला
पर अभी कुर्ला (ईस्‍ट) के नेहरू नगर
में अभ्‍युदय बैंक तक ही पहुंचे थे
कि अनिता कुमार जी का भी फोन आ गया
उनसे मिलने का रोमांच तीनों को भा गया।

आईं और वे भी हो गईं शामिल
आपसे में हम रहे थे खूब मिल

सडक पर ही बतिया रहे थे
फोटो भी खींच-खिंचवा रहे थे

तभी बहुत कमाल हो गया
हम कुल चार रहे
पर फोटो में तीन से अधिक
समा नहीं पाए

कैमरा मोबाइल की यही माया है
चित्र खींचने वाले की नहीं आती छाया है।

मुझ पर अभी ताजी और लंबी
स्‍मृतियों की खूब घनी छाया है

छाया यह बनी रहनी चाहिये
स्‍मृतियों की पालकी सदा बहनी चाहिये।


पहले चित्र में मेरे सिवाय और अंतिम चित्र में दिखलाई दे रहे सरदारजी को पहचानिये। इन दोनों चित्रों का पूरा विवरण देंगे तो और भी भला लगेगा। अगली पोस्‍ट अंतिम चित्र और इससे जुड़ी चित्रमय यादों पर। जाइयेगा जरूर, पर लौट कर अवश्‍य आइयेगा हुजूर। मिलते हैं ब्रेक के बाद ...