उनसे मेरी उल्फ़तों का सिलसिला,
चल निकला -- चल निकला
चल निकला -- चल निकला
इश्क़ का सैलाब, शक्ले-अश्क लेकर,
ढल निकला -- ढल निकला
--बवाल
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तो बवाल भाई फिर ये भी आज़मा लेतें हैं ....?
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तो बवाल भाई फिर ये भी आज़मा लेतें हैं ....?
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जबलपुर के संगीतकार सुनील पारे
जी की ब्रिगेड के लिए खास पेश कश ____________________
बवाल भाई आपकी पोस्ट में हस्तक्षेप के लिए माफ़ करेंगे मैं चाहता हूँ
आपकी पोस्ट के ऊपर कोई पोस्ट तब तक न आये जब तक की आप के सुधि पाठक इधर आ रहें हैं
सादर :"मुकुल"
बवाल जी यह इश्क है ही ऎसा...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लगी आप की यह रचना, चंद शव्दो मै बहुत कुछ कह दिया
बहुत सुन्दर चंद शब्दों मे इश्क की दास्तँ?जिसे शायरों ने कहने मे इतना विशाल साहित्य रच दिया। वाह । धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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जवाब देंहटाएंबवाल जी
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा....
एक पहलू और है....
ज़ख्म न कुरेदो,
जानेगी सारी दुनिया .
बेवफाई उनकी,
जिक्रे हयात मेरे ...
- विजय
वाह वाह बवाल!!
जवाब देंहटाएंक्या खूब आये....
अब तो पार्टी हो जाये...
मय के साथ, मछली का कबाब
तल निकला...तल निकला!!
-चीयर्स!!!
पारे जी को भी सुन लिया, बढ़िया.
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