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18 जन॰ 2010

सर्दी की लहर में एक चर्चा मदक कलि और मंहगाई

नसों को हिला देने वाली सर्द हवाएं चल रही थी . करीब एक हफ्ते से पान नहीं खाया था ....यह फ़िल्मी गाना ओ मदकक्ली ओ मदककली गुनगुनाते हुए पान की दुकान पर पहुँच गया . तो पानवाला बड़ा खुश हो गया जैसे कोई मुर्गा हलाल होने पहुँच गया हो .

बनियो की आदत के मुताबिक मुस्कुराकर बोला - बाबू आज बड़ी मस्ती में दिख रहा हो ..आज का बात है .....

मैंने कहा ख़ाक मस्ती कर रहा हूँ . ठण्ड इतनी पड़ रही है की मुंह अपने आप फड़कने लगता है और तुम समझ रहे हो की मै गाना गुनगुना रहा हूँ . अरे उस मंहगाई रूपी मदक कलि की बात करो जो सबको मटक मटक कर हलाकान कर रही है . तुम्हें मालूम है इस फिल्म के डायरेक्टर केन्द्रीय मंत्री पावर साब है . अरे पान वाले एक ज्योतिष ने इनके बारे में यहाँ तक कह दिया है की पवार जी को ये वाला मंत्री नहीं होना था . ये वाले का अर्थ है दाल रोटी वाला विभाग का मंत्री . हर तरफ से ओले पड़ रहे है बस वे फ़िल्मी डायरेक्टर की तरह कह देते है की अभी मंहगाई की फिल्म और चलेगी.

पानवाले ने टोककर कहा - अरे इन बुढऊ को कोई भी विभाग दे दो इनके बस में अब कुछ नहीं है अब इन्हें इस उम्र में अपने घर के नाती पोतो को खिलाना चाहिए .

मैंने कहा - यार पानवाले तुम भी बड़ी मीठी मीठी बात करत हो जिससे तुम्हारी पान की दुकान खूब चलें . पान तो मीठा खिलाते हो पर पान में चूना बहुत डाल देते हो तो पान खाने की इच्छा नहीं होती है . पान वाला था बनिया प्रवृति का ताड़ गया की ये ग्राहक महाराज खिसक लेंगे फिर कभी न आएंगे इसीलिए चेप्टर को फ़ौरन बदल कर बोला - महाराज वो लंगोटा नन्द महाराज नहीं दिख रहे है . कभी उनसे मुलाकात होती है की नहीं ?

मैंने कहा - हाँ पिछले सप्ताह हिमालय पर थे अकेले एक लंगोट पर थे अधिक ठण्ड खा रहे थे . शायद लंगोटी में सिगड़ी बांध कर बैठे होंगें और यह कहते हुए मुश्कुराते हुए मैंने पान की दुकान से अंतिम बिदा ली...

आलेख व्यंग्य - महेंद्र मिश्र
जबलपुर

4 टिप्‍पणियां:

  1. ब्रिगेड पर कमांडर की पोस्ट
    वाह मज़ा आ गया
    ये सिगड़ी वाली कल्पना ने तो हिला के रख दिया

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  2. ये जो गुरु जी लंगोट के साथ सिगड़ी बांधे हो
    बच्चा बड़ी जोरदार कहन है ओउर अंतिम विदा काहे कहा बच्चा

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  3. सिगड़ी और लंगोट का, अजब अनूठा साथ.
    जय बम भोला बोलिए, भस्म लगाकर माथ..
    बजा चमीटा जोर से, जब देंगे ललकार.
    पड़े पैर यमदेव भी, कर तव जय-जयकार..
    नेह नर्मदा में नहा, हो ब्रिगेड भी संग.
    जबलपुर का जगत में खूब जमेगा रंग..

    बधाई अच्छे लेख के लिए.

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  4. सुन तो रहे हैं कि इस बार जैसी ठंड पहले नहीं देखी..हम्म!!

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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