तुम क्यों हो,
यूं परेशाँ,
मेरी खातिर,
चलो छोडो,
मेरे जज्बात,
मुझ ही तक,
रहने दो॥
जो अब भी ,
न समझे तुम,
मेरी नज़रों ,
की भाषा ,
ख़त्म करो,
ये बात ,
यहीं तक,
रहने दो॥
मैंने कब कहा,
की तुम,
मुझे अपना,
हमकदम बना लो,
जो रास्ते,
और भी हैं,
चले जाओ खुशी से,
ये साथ,
यहीं तक,
रहने दो॥
मैं जानता हूँ,
तुम चमकता,
चाँद हो,
मैं चमकती रेत,
मगर गर्दिशों की,
तुम रहो,
आसमान में मुस्कुराते,
जमीन तक,
रहने दो॥
मैंने कब,
कहा तुमसे,
की तुम,
रुस्वाइयां झेलो,
हमें तो,
आदत है इसकी,
ये सौगात ,
हमीं तक,
रहने दो॥
चलो छोडो , रहने दो ...............
मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
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20 जन॰ 2010
चलो छोडो , रहने दो ...............
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जो अब भी ,
जवाब देंहटाएंन समझे तुम,
मेरी नज़रों ,
की भाषा ,
ख़त्म करो,
ये बात ,
यहीं तक,
रहने दो॥
bahut achhi rachna. utkrashth
bahut hi khubsurat rachna....
जवाब देंहटाएंmaja aa gaya ...
jai ho ajay kumar ji jai ho padharne kaa shukriya
जवाब देंहटाएंमैंने कब,
जवाब देंहटाएंकहा तुमसे,
की तुम,
रुस्वाइयां झेलो,
हमें तो,
आदत है इसकी,
ये सौगात ,
हमीं तक,
रहने दो॥
चलो छोडो , रहने दो .....
-ओह!! अजय भाई..क्या गजब कर रहे हैं.
आनन्द आ गया!
चमकते चांद को टूटा हुआ तारा बना डाला,
जवाब देंहटाएंमेरी आवारगी ने मुझे गलियों का बंजारा बना डाला...
जय हिंद...