20 जन॰ 2010

चलो छोडो , रहने दो ...............



तुम क्यों हो,
यूं परेशाँ,
मेरी खातिर,
चलो छोडो,
मेरे जज्बात,
मुझ ही तक,
रहने दो॥

जो अब भी ,
न समझे तुम,
मेरी नज़रों ,
की भाषा ,
ख़त्म करो,
ये बात ,
यहीं तक,
रहने दो॥

मैंने कब कहा,
की तुम,
मुझे अपना,
हमकदम बना लो,
जो रास्ते,
और भी हैं,
चले जाओ खुशी से,
ये साथ,
यहीं तक,
रहने दो॥

मैं जानता हूँ,
तुम चमकता,
चाँद हो,
मैं चमकती रेत,
मगर गर्दिशों की,
तुम रहो,
आसमान में मुस्कुराते,
जमीन तक,
रहने दो॥

मैंने कब,
कहा तुमसे,
की तुम,
रुस्वाइयां झेलो,
हमें तो,
आदत है इसकी,
ये सौगात ,
हमीं तक,
रहने दो॥

चलो छोडो , रहने दो ...............

5 टिप्‍पणियां:

  1. जो अब भी ,
    न समझे तुम,
    मेरी नज़रों ,
    की भाषा ,
    ख़त्म करो,
    ये बात ,
    यहीं तक,
    रहने दो॥
    bahut achhi rachna. utkrashth

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  2. मैंने कब,
    कहा तुमसे,
    की तुम,
    रुस्वाइयां झेलो,
    हमें तो,
    आदत है इसकी,
    ये सौगात ,
    हमीं तक,
    रहने दो॥

    चलो छोडो , रहने दो .....


    -ओह!! अजय भाई..क्या गजब कर रहे हैं.

    आनन्द आ गया!

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  3. चमकते चांद को टूटा हुआ तारा बना डाला,
    मेरी आवारगी ने मुझे गलियों का बंजारा बना डाला...

    जय हिंद...

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!