3 फ़र॰ 2010

श्री शरद कोकास, श्री कुलवंत हैप्पी, श्रीमती संगीता पुरी श्री अविनाश वाचस्पति एवंभाई दीपक मशाल से बात चीत

एक कोशिश है पाडकास्ट साक्षात्कार सव्यसाची  कला  ग्रुप  जबलपुर के पन्नो पर श्री शरद कोकास, श्री कुलवंत हैप्पी, श्रीमती संगीता पुरी के साक्षात्कार के बाद आज  एवं श्री अविनाश वाचस्पति के साथ बातचीत भाग  एक एवं भाग दो के साथ भाई दीपक मशाल से बात चीत सुनिए  इस कोशिश में कमियाँ ज़रूर होंगी आपका हार्दिक स्वागत है उन कमियों एवं त्रुटियों पर ध्यान आकृष्ट कराने . ब्लॉग जगत से इतर लोगों को भी यथा संभव यहाँ लाने की कोशिश में हूँ.
सादर

 
चश्मे का हार पहने अविनाश जी 


भाई दीपक मशाल जी 
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जिन साथियों ने हेड फोन खरीद लिए हैं कृपया तुरंत मेरे मेल पते पर सूचित कीजिये शायद आपका अगला नंबर हो 
 

5 टिप्‍पणियां:

  1. अभी दीपक मशाल जी को और सुन लिया एवं अच्छा लगा.

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  2. अभी दीपक और कुलवंत भाई को सुना बहुत अच्‍छा लगा। और दीपक भाई की कविता तो बा ही गई।


    और तो बहुत मोती आपने छोड़ रखे है, जल्‍द ही आकर बटोरूगाँ।

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  3. चश्‍मे के हार

    के साथ कानों के कुंडल

    (हैडफोन विद माइक)
    अवश्‍य लें और

    रूबरू हों मुकुल जी से

    जिनसे बातचीत करके

    मन कमल खिल जाता है

    सच कहूं

    आजकल तो

    तकनीक ही विधाता है।

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!