आज की रचना: दोहा सलिला
संजीव 'सलिल'
सत्ता की जय बोलिए, दुनिया का दस्तूर.
सत्ता पा मदमस्त हो, रहें नशे में चूर..
है विनाश की दिशा यह, भूल रहे सब जान.
वंशज हम धृतराष्ट्र के, सके न सच पहचान.
जो निज मन को जीत ले, उसे नमन कर मौन.
निज मन से यह पूछिए, छिपा आपमें कौन?.
एक नहीं दो-दो मात्राएँ, नर से ज्यादा भारी.
आज नहीं चिर काल से, रहती आयी नारी..
मैन आप वूमैन वह, किसमें ज्यादा भार?
सत्य जान करिए नमन, करिए पायें प्यार.
मुझे तुम न भूलीं, मुझे ज्ञात है यह.
तभी तो उषामय, मधुर प्रात है यह..
ये बासंती मौसम, हवा में खुनक सी-
परिंदों की चह-चहसा ज़ज्बात है यह..
काल ग्रन्थ की पांडुलिपि, लिखता जाने कौन?
जब-जब पूछा प्रश्न यह, उत्तर पाया मौन..
जय प्रकाश की बोलिए, मानस होगा शांत.
'सलिल' मिटाकर तिमिर को, पथ पायें निर्भ्रांत..
परिंदा नन्हा है छोटे पर मगर है हौसला.
बना ले तूफ़ान में भी, जोड़ तिनका घोंसला..
अश्वारोही रश्मि की, प्रभा निहारो मीत.
जीत तिमिर उजियार दे, जग मनभावन रीत..
हम 'मैं' बनकर जी रहे, 'तुम' से होकर दूर.
काश कभी 'हम एक' हों, खुसी मिले भरपूर..
अनिल अनल भू नभ सलिल, मिल भरते हैं रंग.
समझ न पाता साम्य तो, होता मानव तंग.
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मयकदा पास हैं पर बंदिश हैं ही कुछ ऐसी ..... मयकश बादशा है और हम सब दिलजले हैं !!
बढ़िया दोहे!
जवाब देंहटाएंजो निज मन को जीत ले, उसे नमन कर मौन.
जवाब देंहटाएंनिज मन से यह पूछिए, छिपा आपमें कौन?.
एक नहीं दो-दो मात्राएँ, नर से ज्यादा भारी.
आज नहीं चिर काल से, रहती आयी नारी..
मैन आप वूमैन वह, किसमें ज्यादा भार?
सत्य जान करिए नमन, करिए पायें प्यार.
दिल चाहता है सभी को कोट कर दूंम हमेशा की तरह लाजवाब्
उत्साहवर्धन हेतु आभार.
जवाब देंहटाएंअदभुत भाई साहब मज़ा आ गया
जवाब देंहटाएंएक नहीं दो-दो मात्राएँ, नर से ज्यादा भारी.
आज नहीं चिर काल से, रहती आयी नारी.