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31 मार्च 2010

काव्य रचना: मुस्कान --संजीव 'सलिल'

काव्य रचना:

मुस्कान

संजीव 'सलिल'

जिस चेहरे पर हो मुस्कान,
वह लगता हमको रस-खान..

अधर हँसें तो लगता है-
हैं रस-लीन किशन भगवान..

आँखें हँसती तो दिखते -
उनमें छिपे राम गुणवान..

उमा, रमा, शारदा लगें
रस-निधि कोई नहीं अनजान..

'सलिल' रस कलश है जीवन
सुख देकर बन जा इंसान..

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3 टिप्‍पणियां:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

कितना असरदार

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