19 मार्च 2010

अनिल पुसदकर जी के नाम पाती किन्तु इससे उनका कोई लेना देना नहीं जो........व्यक्तिगत विचारों को सर्वोपरि मानते हैं......?

अनिल  पुसदकरजी के ब्लॉग 'अमीर-धरती ........'  पर प्रकाशित आलेख 'लड़कियां मोबाईल का प्लान नही है टाटा सेठ जो चाहे रोज़ बदल लो! '  पर टिप्पणी कर मेरे अभिन्न मित्र राज़-भाटिया जी ने टिप्पणी कर के आफत मोल ले ली है आपके ब्लॉग पर. दर असल भाटिया जी क्या हर कोई तिलमिलाया है गलीच विज्ञापनों की बाढ से.मुझे 1992-93 का  पुराना वाकया याद आ रहा है.... किसी स्कूली बच्चे का ख़त मिला टूटी फूटी भाषा में जो कलेक्टर महोदय को संबोधित था उसमें उस बच्चे ने कहा था 'सर , अमुक स्थान के विज्ञापन फलक पर एविटा साबुन का गंदा विज्ञापन लगा है उसे हटवा दीजिये...'बच्चे की इस गुहार को अविभाजित मध्य-प्रदेश के समय जबलपुर कलेक्टर रहे श्री विवेक डांड जी जो अब आपके प्रदेश में सचिव हैं ने तुरंत उस एड को हटवाया.था . जब एक बच्चा तिलमिला सकता है तो हम क्यों खामोश होकर यह सब देख रहें हैं. तब इस तरह का कोहराम नहीं मचा न ही कोई वाक्विलास हुआ. आपका उददेश्य यही था न कि पुरजोर विरोध हो ऐसे विज्ञापनों का.......किन्तु यहाँ तो कुछ और हो गया जबकि होना यह था कि हम  सब ब्लॉगर मिल कर  भले ही प्रथक-प्रथक किन्तु सूचना-प्रसारण मंत्री  जी को लिखते.... ऐसा न करते हुए हम सिर्फ बयान बाज़ी और खम्बा-नौच-काम्पीटिशन में जुट गए.... ये क्या उचित है.....यदि यही हिंदी ब्लागिंग है तो फिर मुझे भी ओरों की तरह कहना होगा कि हिंदी ब्लागिंग अनुशासन हीन हो रही है. जो  गलत है. मुझे तो उन बहनों और बेटियों से भी शिकायत  है जो गंदे विज्ञापनों में काम करतीं हैं. क्या उनको इस बात का ध्यान नहीं कि इसके परिणाम क्या होंगे. अधिकाँश लोग विज्ञापन न देखे जाने की बात कह रहे हैं. खैर ये तो  क्या होगा. आपने सही कहा 

 
Anil Pusadkar रचना जी उस विज्ञापन को मैने समय निकाल कर नही देखा,वो इतनी बार दिखाया जा रहा है कि आप अगर समाचार देखें या आई पी एल के क्रिकेट मैच,वो विज्ञापन टीवी की स्क्रीन पर आ ही जाता है।आप कितनी बार रिमोट का इस्तेमाल करेंगे चैनल बदलने के लिये?मुझे खराब लगा इस्लिये मैने उसे लिख दिया।वह अकेला नही है और भी बहुत से विज्ञापन आपत्तिजनक है कुछ पर मैं लिख चुका हूं और बाकी पर भी लिखूंगा।
        जहां तक हमारे दायित्वों का सवाल है यदि राज़ जी ने [भले तल्ख़ अंदाज़ में ] याद दिलाये तो किसी का नाम लेकर तो कहा नहीं किसी को बुरा मानना भी नहीं चाहिए. हाँ सब मिल कर कोई पत्र आई टी मंत्रालय को / क़ानून मंत्रालय को लिखें  तो शायद ऐसे  विद्रूप विज्ञापन आने बंद हों. .... न भी हों तो भी एक सही आन्दोलन का शंख नाद तो होगा. आप सभी में से जो भी क़ानून के जानकार हैं वे जानते हैं कि भारत में नारी के अशिष्ट विरूपण के विरुद्ध क़ानून हैं सरकारों को इस और ध्यान देना ही होगा.
    मित्रों:-     अब आप उस विज्ञापन को याद कीजिये जो परफ्यूम का है एक मेहमान युवक मेजबान के घर में चल रहे उत्सव में भाग लेने निकलता है उस घर की एक स्त्री उसकी मदालस गंध से वशीभूत हो कर उसे देह अर्पित करती है. फिर एड में पता चलता है की वह उस स्त्री का स्वप्न था....! आप को यह  एड भी कभी नज़र न आया होगा....कदाचित............? यदि आया है तो फिर हम सब मौन क्यों. पुसदकर जी की तरह इन गलीच व्यापारिक सोच को कुचल क्यों नहीं देते......... क्या संकोच है... क्यों संकोची हैं हम सब .............

18 टिप्‍पणियां:

  1. कभी देखा नहीं यह एड...शायद हमारे हिन्दी चैनल पर भी विज्ञापन यहीं के आते हैं इसलिए.

    जवाब देंहटाएं
  2. बिल्कुल बजा फ़रमा रहे हैं गिरीश भाई ....और ये भी तय है कि यदि ब्लोगजगत पर इसे एक मुहिम की तरह चलाया जाए ...और सभी ब्लोग्गर्स इसके लिए साथ दें तो ....असर न दिखे ऐसा हो ही नहीं सकता ..मैं खुद इस विषय पर बहुत जल्द लिखने का वादा करता हूं ...
    अजय कुमार झा

    जवाब देंहटाएं
  3. ापसे सहम्त हूँ नारी की आज़ादी का हर्गिज ये मतलव नही कि वो अपनी गरिमा भूल जाये और ऐसे विग्यापनों मे काम कर के खुद को बाज़ार के इशारों पर चलाये। समाज के लिये कुछ नीयम औरत और मर्द दोनो के लिये ही जरूरी हैं। धन्यवाद । पूरे मामले के बारे मे तो अनजान हूँ आजकल बहुत कम ब्लाग्ज़ पर आ रही हूँ मगर अश्लीलता के खिलाफ मै भी हूँ। धन्यवाद। कुछ दिन की छुट्टी के लिये क्षमा करें। धन्यवाद्

    जवाब देंहटाएं
  4. जबलपुर से पूर्व श्री विवेक ढांढ दुर्ग में कलेक्टर थे । उस समय वे साक्षरता समिति के अध्यक्ष भी थे । इस तरह की बातों के प्रति उनकी अलग दृष्टि थी । यह आपने अच्छा वाकया याद दिलाया ।आज पता नहीं बाज़ार की शक्तियों के विरुद्ध कोई इस तरह का साहस करने का प्रयास करेगा या नहीं ?

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  6. अनुशासनहीन और अश्लीलता पूर्ण अभिव्यक्ति चाहे वह विज्ञापन हों या कि लेख, सबका पुरजोर विरोध जरूरी है. हम संस्कृति के प्रति भी जिम्मेदार हैं और एक सम्मानजनक व्यवहार के लिए भी. नारी हो या पुरुष दोनों सम्माननीय हैं. इसके लिए हम यदि वर्ग विशेष को लक्ष्य करके अनर्गल लिखते हैं और अभिव्यक्तिकी स्वतंत्रता का नारा लगते हैं तो हम खुद को ही भुलावा दे रहे होते हैं.
    जहाँ मैं किसी का भी असम्मान पाती हूँ, ऐसे ब्लोग्स को हमेशा बहिष्कार करती हूँ और सभी लोगों से भी ऐसा करने के लिए कहती हूँ. मैं बहुत लोकप्रिय नहीं हूँ कि मेरे बहिष्कार से कोई फर्क पड़ेगा लेकिन मेरी आत्मा यही कहती है.

    जवाब देंहटाएं
  7. बिलौरे जी आभारी हूं आपका जो आपने मेरी भावना को सही-सही समझा।ये पहली बार नही है जो मैने विज्ञापनों मे अश्लीलता और उसके जरिये सांस्कृतिक हमलों के खिलाफ़ लिखा है।अभी हाल ही मे मैने एक सीमेंत कम्पनी के विज्ञापन के खिलाफ़ भी लिखा था जिसमे एक लड़की को बिकनी मे समुद्र से निकलते दिखाया गया है।बताईये भला लड़की का बिकनी का और समुद्र का सीमेंट से क्या लेना-देना है?मेरा उद्देश्य सिर्फ़ व्यावसायिकता के नम पर बक़वास के खिलाफ़ आवाज़ उठाना था और उसमे शायद मैं सफ़ल नही हो पाया क्योंकि बात दूसरी ओर मुड़ गई।खैर मैं तो अपना काम करते रहुंगा,आप जैसे साथियों का सहयोग मिलता रहे बस।

    जवाब देंहटाएं
  8. @ रेखा जी
    आप ने सधे और सटीक शब्दों में बात रखी शुक्रिया
    @ रचना जी
    आप की बातों का उत्तर देना ज़रूरी नहीं आप सदा
    सद-भावना से कही बातों को गलत दिशा में ले जातीं हैं आप का आभार इस ब्लॉग पर आने के लिए
    आपके कमेन्ट को हटा रहा हूँ

    जवाब देंहटाएं
  9. अनिल जी
    सही बात सही होती है मैंने उसे सही लाइन पे लाने की कोशिश की जो
    किसी सोच के हाथों अगुवा कर लिया गया था . आप और हम मिल कर इस मसले
    पर आलेखन ही नहीं जिम्मेदार विभागों को सचेत करने पत्र अभियान आरम्भ करना चाहते हैं

    जवाब देंहटाएं
  10. शुक्रिया कपिला जी/भारतीय नागरिक जी/समीर भाई
    आप ने सार्थक बात कही हम ज़रूर लिखें
    एक सूत्र तो दिया अनिल भाई ने चलिए इसे
    आगे लायें सोये सामर्थ्य को जगाएं

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रियवर गिरीश बिल्लौरे जी!
    आपकी बात से में सिर्फ सहमत ही नही
    बल्कि इस मुहिम में आपके साथ हूँ!
    मैं इस हेतु आई.टी मन्त्रालय और
    कानून मन्त्रालय को भी पत्र लिख रहा हूँ!

    जवाब देंहटाएं
  12. @ रेखा जी
    "हम यदि वर्ग विशेष को लक्ष्य करके अनर्गल लिखते हैं और अभिव्यक्तिकी स्वतंत्रता का नारा लगते हैं तो हम खुद को ही भुलावा दे रहे होते हैं.
    जहाँ मैं किसी का भी असम्मान पाती हूँ, ऐसे ब्लोग्स को हमेशा बहिष्कार करती हूँ और सभी लोगों से भी ऐसा करने के लिए कहती हूँ."

    ये आपने कहा

    अब ये पढ़िए जो इसी संदर्भित अनिल के ब्लॉग में टिप्पणी आई

    " हिंदी ब्लॉगर कितना पढते हैं और कितना उनका पूर्वाग्रह हैं इसी से पता चलता हैं"
    ये आपके सामूहिक ब्लाग के एक सदस्य का विचार है . अब आपका अगला कदम क्या है ?

    जवाब देंहटाएं
  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  14. गिरीश जी!!

    आपने बिलकुल सही बात
    सबके समक्ष रखी है |
    इस मुहीम में ,
    हम आपके साथ हैं |
    धन्यवाद !!!

    जवाब देंहटाएं
  15. हमें तो इंटरनेट पर अनुशासन के नाम से ही हंसी छूट जाती है.. क्योंकि मैं जानता हूँ कि ये कभी होने वाला नहीं है.. आप किसी का बहिष्कार कर सकते हैं, उसे पढ़ना बंद कर सकते हैं, एक समूह बना कर किसी को उसका मठाधीश बना सकते हैं..
    मगर लिखने से नहीं रोक सकते हैं यहाँ..

    जवाब देंहटाएं

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!