16 अप्रैल 2010

ये जाने अनजाने छायाकार

शशिन जी की याद में फोटो ग्राफी एक्जीबीशन -सह -जाने अनजाने छायाकार प्रतियोगिता  १६ अप्रैल २०१० से  जबलपुर में आरम्भ होगी



मैं नहीं चाहता कि
तुम सपना बनो
मैं नहीं चाहता कि
मैं भी सपना बनूं
सत्य मैं हूं सत्य रहूं
सत्य तू है सत्य रहे
तेरे दुखों से मैं संवेदित होऊं
और मेरी व्यथा को
तुम समझो
इतना कुछ
कर लेंगे हम
तो अच्छा होगा
2.
आबज़रवेटरी
सात हज़ार छै: सौ अठयासी फुट ऊंची
रोमनों के टोपों से बने कुछ
गुंबजों से घिरी
आबज़रवेटरी ?
जी हां
जहां से ऊंचे, बहुत ऊंचे,
उस आसमां में फैले
सितारों की दुनिया में
आदमी
जबसे झांकना सीखा है
तो पर्वतों की चोटियों पर
बादलों से भी ऊंचे
आबज़रवेटरी बना कर
उसने ऊपर ही ऊपर देखना जाना है
ज़मीं की सारी बातें
जैसे वह भूल सा गया है
शशिन जी पर राज कुमार केशवानी का आलेख भी देखिये  उनके ब्लाग ”बाजे वाले की गलि में

1 टिप्पणी:

  1. तसवीर और कविताएं दोनो ही मार्मिक ।
    आशा है आप प्रदर्शनी के चित्र भी जरूर दिखायेंगे ।

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!