4 अग॰ 2010

अभिनव प्रयोग: हाइकु / कुण्डली गीत: मन में दृढ विश्वास संजीव 'सलिल'

अभिनव प्रयोग:

हाइकु / कुण्डली गीत:

मन में दृढ विश्वास

संजीव 'सलिल'
*

मन में दृढ
विश्वास रख हम
करें प्रयास...
*
अपनी क्या सामर्थ्य है?, लें हम पहले तोल.
और बाद में निकालें, अपने मुँह से बोल..
अपने मुँह से बोल, निकालें सरस हुलसकर.
जो सुन ले, प्रोत्साहित होकर मिले पुलककर..
कहे 'सलिल' कविराय, लक्ष्य साजन श्रम सजनी.
यही विनय है दैव!, चुके ना हिम्मत अपनी..
*
जब भी पायें
त्रास, तब मंजिल
रहती पास...
*
अपनी रचना से करें, मानव का अभिषेक.
नव विकास के दीप शत, जला सकें सविवेक..
जला सकें सविवेक, प्रकाशित हो सब दुनिया.
कान्हा-राधा से, घर-घर हों मुन्ना-मुनिया..
कहे 'सलिल' कविराय, पूर्णिमा हो हर रजनी.
प्रभु जैसी कथनी, वैसी हो करनी अपनी ..
*
दिखे सभी में
निज सदृश, प्रभु
का है आवास...
*
-दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

2 टिप्‍पणियां:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!