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16 जन॰ 2013

गीत: आओ! आँख मिचौली खेलें... संजीव 'सलिल'

चित्र पर कविता रचें:



गीत:
आओ! आँख मिचौली खेलें...
संजीव 'सलिल'
*
जीवन की आपाधापी में,
बहुत थक गए, ऊब गए हम।
भूल हँसी, मस्ती, खुशियों को,
व्यर्थ फ़िक्र में डूब गए हम।
छोड़ें सारा काम, चलो अब
और न हम बेबस तन ठेलें,
आओ! आँख मिचौली खेलें...
*
टीप-रेस, कन्ना-कौड़ी हो,
कंचे, चीटी-धप मत भूलें।
चढ़ें पेड़ पर झूला डालें,
ऊंची पेंग बढ़ा नभ छू लें।
बात और की भी  मानें कुछ,
सिर्फ न अपनी अपनी पेलें-
आओ! आँख मिचौली खेलें...
*
मिस्टर-मिसेज, न अंकल-आंटी,
गुइयाँ, साथी, सखा, सहेली।
भूलें मैनर, हाय-हलो भी- 
पूछें-बूझें मचल पहेली।
सुना चुटकुले, लगा ठहाके,
भुज-पाशों में कसकर लेलें -
आओ! आँख मिचौली खेलें...
*

4 टिप्‍पणियां:

कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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