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28 जून 2013

kriti charcha / book review : Achcarya Sanjiv Verma 'Salil'


कृति चर्चा:
बिजली का बदलता परिदृश्य : कमी कैसे हो अदृश्य?
चर्चाकार : संजीव
*
[कृति विवरण : बिजली का बदलता परिदृश्य, तकनीकी जनोपयोगी, इंजी. विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र', आकार डिमाई, आवरण बहुरंगा पेपरबैक, पृष्ठ १००, मूल्य १५० रु., जी नाइन पब्लिकेशन्स रायपुर छतीसगढ़ ]
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHMxMYpoqjb-NhTwT5oQ9MU11tpostoFUvPcyi5wZ2C6lStlVkgZQqx3M6q9ZyFMoSe5NTzOFbicpgrf_aA_ntffjP-qer0OW32W3oisRqZV6XCX2yiJd4mHMGjBlEdFZf3BQYgE5d3QdX/s220/vivek+photo.bmp*                                    
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् भी मानसिक गुलामी समाप्त नहीं हुई। फलतः राजनैतिक आज़ादी दलीय द्वेष तथा सत्ता प्रतिष्ठान के स्वार्थों की हथकड़ी-बेदी में क़ैद होकर रह गयी। जनमत के साथ-साथ जनभाषा हिंदी भी ऊंचे पदों की लालसा पाले बौने नेताओं की दोषपूर्ण नीतियों के कारण दिनों-दिन अधिकाधिक उपेक्षित होती गयी। वर्तान समय में जब विदेशी भाषा अंग्रेजी में माँ के आँचल की छाया में खेलते शिशुओं का अक्षरारंभ और विद्यारम्भ हो रहा है तब मध्य प्रदेश पूर्वी क्षेत्र विद्युत् वितरण कम्पनी जबलपुर में अधीक्षण यंत्री व जनसंपर्क अधिकारी के पद पर कार्यरत इंजी. विवेकरंजन श्रीवास्तव 'विनम्र' ने बिजली उत्पादन-वितरण संबंधी नीतियों, विधियों, वितरण के तरीकों, बिजली ग्रिड की क्षतिग्रस्तता, विद्युत्-बचत, परमाणु बिजली घरों के खतरे और उनका निराकरण, सूचना प्रौद्योगिकी, बिजली देयक भुगतान की अधुनातन प्रणाली, विद्युत् उत्पादन में जन भागीदारी, ग्रामीण आपूर्ति विभक्तिकरण योजना,विद्युत् चोरी और जनजागरण, आदि तकनीकी-सामाजिक विषयों पर हिंदी में पुस्तक लिखकर सराहनीय कार्य किया है। इन विषयों पर जनोपयोगी साहित्य अभी अंग्रेजी में लगभग अप्राप्य है।
विवेच्य कृति 'देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर' की तरह तकनीकी और दुरूह विषयों पर सामान्य जनों के ग्रहणीय सरल-सहज भाषा में सरसता के साथ प्रस्तुत करने की चुनौती को विनम्र ने पूरी विनम्रता सहित न केवल स्वीकारा है अपितु सफलतापूर्वक जीता भी है। तकनीकी विषयों पर हिंदी में लेखन कार्य की कठिनाई का कारण हिंदी में तकनीकी पारिभाषिक शब्दों का अभाव तथा उपलब्ध शब्दों का अप्रचलित होना है। विनम्र ने इस समस्या का व्यवहारिक निदान खोज लिया है। उन्होंने रिएक्टर,ब्लैक आउट, पॉवरग्रिड फेल, फीडर, ई-पेमेंट, ए.टी.पी., कंप्यूटर, टैकनोलोजी, ट्रांसफोर्मर, मीटर रीडिंग जैसे लोकप्रिय-प्रचलित शब्दों का हिंदी शब्दों की ही तरह निस्संकोच प्रयोगकर व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया है।
इस कृति का वैशिष्टय  भारतीय वांग्मय की अगस्त्य संहिता में दिए गए विद्युत् उत्पादन संबंधी सूत्र, ऑक्सीजन को नाइट्रोजन में परिवर्तित करने की विधि, विविध प्राकृतिक उपादानों से विदुत उत्पादन, इलेक्ट्रोप्लेटिंग आदि संबंधी श्लोक दिया जाना है।
बैंकाक, कनाडा आदि देशों की बिजली व्यवस्था पर लेखों ने भारतीय विद्युत् व्यवस्था के तुलनात्मक अध्ययन का अवसर सुलभ कराया है।
सम सामयिक विषयों में ऊर्जा की बचत, विद्युत् चोरी रोकने, बिजली देयकों के भुगतान में  रोकने  ई-प्रणाली, ए.टी.पी. से भुगतान, विद्युत् उत्पादन में जन भागीदारी आदि महत्वपूर्ण हैं। जबलपुर के समीप चुटका में प्रस्तावित परमाणु बिजली घर के बारे में तथाकथित पर्यावरणवादियों द्वारा फैलाये जा रहे भय, हानि संबंधी दुष्प्रचार, तथा भ्रमित जनांदोलनों के परिप्रेक्ष्य में विनम्र ने संतुलित ढंग से तथ्यपरक जानकारी देते हुए इस परियोजना को निष्पादित किये जाने का औचित्य प्रमाणित किया है।
आलोच्य पुस्तक के अंतिम अध्यायों में विद्युत् मंडल के विखंडन तथा विद्युत् अधिनियम २००३ जन जानकारी की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। भविष्य तथा युवाओं की दृष्टि से विद्यत संबंधी नवोन्मेषी प्रयोगों पर लेखन ने एक स्वतंत्र अध्याय में जानकारी दी है। तिरुमला मंदिर में सौर बिजली, गाँवों के लिए धन की भूसी (हस्क) से विद्युत् उत्पादन, चरखे से सूत कातने के साथ-साथ बिजली बनाना, कुल्हड़ों में गोबर के घोल से बिजली बनाना, पन बिजली उत्पादन, नाले के गंदे पानी और बैक्टीरिया से बिजली बनाना, कोल्हू से तेल पिराई के साथ-साथ बिजली बनाना, कम लगत के ट्रांसफोर्मर, भूमिगत विद्युत् स्टेशन आदि जानकारियाँ आँखें खोल देनेवाली हैं. इन विधियों के प्रोटोटाइप या व्यावहारिक क्रियान्वयन संबंधी सामग्री व् तकनीक विवरण, परियोजना विवरण, प्रक्रिया संविधि, सावधानियां, लागत, हानि-लाभ आदि व्यावहारिक क्रियान्वयन की दृष्टि से दिया जाता तो सोने में सुहागा होता।
इंजी. विवेकरंजन श्रीवास्तव 'विनम्र' की इस स्वागतेय तथा जनोपयोगी कृति को हर घर तथा शिक्षा संस्था में विद्यार्थियों तक पहुँचाया जाना चाहिए।

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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