ॐ
छंद सलिला:
काव्य छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति अवतारी, प्रति चरण मात्रा २४ मात्रा, यति ग्यारह-तेरह, मात्रा बाँट ६+४+४+४+६, हर चरण में ग्यारहवीं मात्रा लघु
लक्षण छंद:
काव्य छंद / चौबी/स, कला / ग्यारह/-तेरह हो
छंद सलिला:
काव्य छंद
संजीव
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छंद-लक्षण: जाति अवतारी, प्रति चरण मात्रा २४ मात्रा, यति ग्यारह-तेरह, मात्रा बाँट ६+४+४+४+६, हर चरण में ग्यारहवीं मात्रा लघु
लक्षण छंद:
काव्य छंद / चौबी/स, कला / ग्यारह/-तेरह हो
रखें कला / लघु रू/द्र, षट क/ली आ/दि-अंत हो
मध्य चतुष्/कल ती/न, द्विमा/ता क/र्मदेव वत
अवतारी / की सुं/द,र छवि / लख शं/का कर मत
(संकेत: रूद्र = ग्यारह, द्विमाता कर्मदेव = नंदिनी-इरावती तथा चित्रगुप्त)
उदाहरण:
१. चमक-दमक/कर दिल / दहला/ती बिज/ली गिरकर
दादुर ना/चे उछ/ल-कूद/कर, मट/क-मटककर
सनन-सनन / सन पव/न खेल/ता मच/ल-मचलकर
ढाँक सूर्य / को मे/घ अकड़/ता गर/ज-गरजकर
दादुर ना/चे उछ/ल-कूद/कर, मट/क-मटककर
सनन-सनन / सन पव/न खेल/ता मच/ल-मचलकर
ढाँक सूर्य / को मे/घ अकड़/ता गर/ज-गरजकर
२. अमन-चैन / की है / तलाश / दुनिया / में सबको
फिर भी झग/ड़े-झं/झट घे/रे हैं / जन-जन को
लोभ--मोह / माया-/ममता / बेढब / चक्कर है
हर युग में /परमा/र्थ-स्वार्थ / की ही /टक्कर है
फिर भी झग/ड़े-झं/झट घे/रे हैं / जन-जन को
लोभ--मोह / माया-/ममता / बेढब / चक्कर है
हर युग में /परमा/र्थ-स्वार्थ / की ही /टक्कर है
३. मस्जिद-मं/दिर ध/र्म-कर्म / का म/र्म न समझे
रीति-रिवा/ज़ों में / रहते / हैं हर/दम उलझे सेवा भू/ले पथ / इनको / मेवा / का रुचता
लालच ने / मोहा,/ तिल भर / भी त्या/ग न दिखता
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सुखदा, सुगति, सुजान, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सुखदा, सुगति, सुजान, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!