बोधिसत्व बनो..!
बोधिसत्व बनना बुद्ध बनने की प्रक्रिया है बुद्ध व्यक्ति नहीं है ईश्वर का अंश है सोचो मुझे कुछ बनना है बुद्ध बनना है। जन्म मृत्यु हर दिन होती है । और कुछ हम हर दिन एक नया व्यक्तित्व पाते हैं अगर चिंतनशील हैं तो..? ईश्वर एक शाश्वत सत्य है ईश्वर है नहीं है यह मिथ्या बहस है। जैसे ही बुद्ध बनते हैं वैसे ही ईश्वर पर उसके आकार पर उसके होने ना होने के विवाद पर बुद्ध की नजर नहीं जाती और वह ईश्वर के अस्तित्व को समझ लेता है। ना तो बुध्द धर्म है न ही पंथ है बुद्ध शास्वत आत्मा है निर्दोष आत्मा है और यही ईश्वर का अंश है। तभी तो कह रहा हूं- "बोधिसत्व बनो और बुद्ध बनने की यात्रा करो रोज जन्मो..! रोज मारो..!! पर इसका मतलब यह नहीं कि शरीर को मारो किसी भी तरह का कष्ट देना लेना हिंसा है । यह पराध्वनि सुन अपने अंदर के सारे विषाणु मारता हूँ । तब लगता है वो मैं जो कल था आज मर गया आज मैं नया अभी अभी जन्मा हूँ ।
नवजात होता हूँ..!
तब पूरी दुनियां संघ लगती है ।
मानव का अर्थ है -"मा रो नया पाओ !" किसे मरोगे वृत्तियों को फिर जन्मोगे अल्लसुबह !
हर नए जन्म में नया चिंतन लेकर आओ अंततः बुद्ध बन जाओ। युद्ध नहीं करना है मत करो। पर युद्ध ना करने से अगर लाखों भारतीय मारे जाते हैं तो युद्ध ना करना हिंसा ही है। तुम विश्व को समाप्त करने के लिए विषाणु भेजते हो हम दुनिया को बचाने के लिए टीके भेज रहे हैं कभी सोचा है तुम अपनी मूल प्रवृत्ति के इर्द-गिर्द हो।
तुम बाएं बाजू चलते रहो मैं दाएं बाजू चलता रहूंगा तुम्हें मुझ से कोई शिकवा नहीं होना चाहिए।
तुम विस्तार करो विचारों का चेतना का चैतन्य का सामरिक विस्तार विस्तार नहीं होता। युद्ध से कभी भी विश्व जीता जा सकता है लेकिन मन नहीं आत्मा अमर है वह भी अविजीत ही रहती है । फिर तुमने किस पर विजय प्राप्त की। माओ ने चूहे चिड़िया गिलहरी खरगोश मार कर जनता को अनाज की बचत करना सिखाया था ।
तुम चिड़िया चूहे गिलहरी खरगोश मारते रहो हम चिडियों से चीटियों तक चुग्गा चुगाते रहेंगे । आओ ना तुम भी दाएं बाजू आ जाओ ।
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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!