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1 मार्च 2021

ईमानदार वही जिसे मौका नहीं मिला..!

भारतीय शासकीय व्यवस्था में भ्रष्टाचार को समाज का आवश्यक अंग माना गया है। आप देखते भी होंगे कहा भी जाता है कि बिना पैसे लिए दिए कोई काम नहीं होता। और यह सच भी है अगर आप भ्रष्ट है तो बहुत सुखी हैं वरना किसी काम के नहीं है।
 यह सत्य है इसे आप नकार नहीं सकते और अगर आपने इस सत्य को सरेआम उजागर करने की कोशिश की तो आप ना तो चैन से नौकरी कर सकते हैं और ना ही आपको आपके अच्छे कामों का पुरस्कार मिलेगा बल्कि आपके खिलाफ षड्यंत्र रचने वाले सांडों की रैली की रैली आप इर्द-गिर्द ए देखेंगे। मैं एक विसिल ब्लोअर के रूप में व्यवस्था को सचेत करता हूं।
पहले तो समझ लीजिए कि ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार क्यों है नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार ना होकर ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार इसलिए है क्योंकि डिमांड ऊपर से आती है ना कि नीचे से . 
नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार ना होकर ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार इसलिए है क्योंकि डिमांड ऊपर से आती है ना कि नीचे से . 
   महंगे चुनाव चुनाव पर होने वाला खर्च भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा आधार है। और इस पर चर्चा कभी होती ही नहीं। लोकायुक्त द्वारा पटवारी राजस्व निरीक्षक से लेकर अधिकारी कर्मचारी बहुत छोटी मछलियां है केवल इन पर ही नजर होती है। वास्तव में इसकी तह में जाएं तो आप पाएंगे कि यह वह सारे लोग हैं जिन्हें कमा के ऊपर भेजना होता है। आपने कभी किसी अदालत के क्लर्क को चपरासी को या किसी भी स्तर के अधिकारी को भ्रष्ट आचरण में पकड़े जाने की कोई खबर सुनी है ? चाहे पेशी बढ़ाने का मामला हो या कागज निकालने फाइल जमा करने का मसला हो पैसे तो लगते हैं। परंतु इनके खिलाफ आज तक कोई मामला ना तो अखबार में छपा है और ना ही किसी ने इनकी शिकायत की।
महालेखाकार समय-समय पर सरकार द्वारा खर्च किए जाने वाले खर्चों पर अंकेक्षण दल क्षेत्रीय भ्रमण पर भेजा जाता है पूरे भारत में यही व्यवस्था लागू है अच्छी व्यवस्था है। मित्रों यह एक ऐसा विभाग है जो भ्रष्टाचार पर नियंत्रण की ताकत संरक्षित करने के लिए बाकायदा शक्ति संपन्न है किंतु इनके मुलाजिम फील्ड में जाकर क्या करते हैं कम से कम शासकीय अमला तो बेहतर तरीके से जानता है। किसी भी प्रकार के ऑब्जेक्शन या असहमति को रेगुलराइज करने के लिए इसे जवाबों से ज्यादा पैसों की जरूरत होती है।
     यह सिलसिला ऑडिट ऑफीसर की आवासीय होटलों में शुरू होता है और वहीं खत्म जाता है ।
   मित्रों कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि... सिस्टम केवल छोटे-छोटे कार्य एवं कार्यक्रमों में पाए जाने भ्रष्ट-आचरण के ही नियंत्रण करने का प्रयास ज्यादा तेजी से करता है जबकि यह प्रयास ऊपर से नीचे तक होना चाहिए।
  ऊपर के स्तर पर होने वाला भ्रष्टाचार निर्णय एवं नीतियों में रद्दो बदल के साथ-साथ पक्षपात एवं भाई भतीजावाद यानी नेपोटिज्म के जरिए किया जाता है। जबकि मध्य एवं निचले स्तर पर भ्रष्टाचार क्षणिक या अल्पकालीन लाभ के लिए किया जा रहा है।
भारतीय समाज का अर्थ उपार्जन करनेब वाले हिस्से का 10 % हिस्सा ईमानदार है ... और वो लोग भी ईमानदार है जिनको अवसर नहीं मिलता .😢

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!

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