15 अप्रैल 2021

हनुमान जी का शक्ति प्रबंधन

जगदम्ब की आराधना का पुनीत पर्व नवरात्रि का आज शुभारंभ है। प्राचीन काल से ही शाक्त मतावलंबियों के लिए नवरात्रि शक्ति के अर्जन एवं संरक्षण का प्रमुख उत्सव रहा है। इस अवधि में योग दर्शन के अनुरूप धारणा, ध्यान एवं समाधि के क्रमिक चरणों से गुजरता हुआ साधक जगत में व्याप्त शक्ति से तादात्म्य स्थापित कर शक्ति के स्वरूप में ही बदलने लगता है। विभूतिपाद में कहा है कि- "बलेषु हस्तिबलादिनी" अर्थात बलों में संयम करने से हाथी आदि के समान बल प्राप्त होते हैं। भाव यह है कि जब भी साधक हाथी या सिंह आदि के बल तथा वायु आदि के वेग से तदाकार होकर समाधि पर्यंत संयम करता है तब वह उन्हीं के बल को प्राप्त होता है। श्री पवन तनय तो साक्षात वायुनंदन ही है। कारण से कार्योत्पत्ति होती है। चूंकि वायु में अपरिमित बल एवं वेग है इसलिए वायुपुत्र में भी अप्रमेय बल एवं वेग होना स्वभाविक है। अभिप्राय इतना ही है कि पवन में जो बल है, जो शक्तियां है, पवनात्मज में वे सभी पवन की अपेक्षा विशेष है एवं अधिक विस्तृत है।


शक्ति आराधन से भी महत्वपूर्ण पक्ष है कि शक्ति का दीर्घकाल तक संचयन कैसे रहे? उसके अपव्यय को हम कैसे न्यून करें? बजरंगबली के जीवन से शक्ति के प्रबंधन को हम समेकित रूप से समझ सकते हैं। रामचरितमानस से ज्ञात होता है कि पवनात्मज ने रामायण के चार चुने वीरों पर मुष्टिका प्रहार किया है। लंका नगर की अधिष्ठात्री देवी लंकिनी पर हनुमान जी का प्रथम मुष्टिका प्रहार हुआ-

'मुठिका एक महा कपि हनी, रुधिर बमत धरनी ढनमनी।'

लंकिनी के प्राण-पखेरू न उड़ जाए और स्त्री हत्या का पाप ना लगे इसलिए उसे हल्के से ही मारा। यही कारण है कि पहले हनुमान जी को चोर कहने वाली लंकिनी जब संभल कर उठती है तो हनुमान जी को हाथ जोड़कर प्रणाम करती है एवं भविष्य के लिए शुभाशीष भी देती है।


हनुमान जी ने दूसरा मुष्टि-प्रहार मेघनाथ पर अशोक वाटिका में किया, मुक्का लगते ही मेघनाथ मूर्छित हो गया लेकिन मेघनाथ के प्राण बच गए। वस्तुतः हनुमान जी के मुक्के का मुख्य उद्देश्य मेघनाथ को पाठ पढ़ाना है ना कि प्राण लेना।  वह तो पाठ पढ़ाकर भी निज प्रभु के कार्य के लिए नागपाश का बंधन स्वीकारने को तैयार है परंतु मेघनाद उनके मुष्टि-प्रहार को भूल नहीं पाता है। यही कारण है कि लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध में हनुमान जी के बार-बार आह्वान के बावजूद मेघनाथ भुक्तभोगी होने के कारण हनुमान जी से युद्ध हेतु तैयार नहीं होता-


"मुठिका मार चढ़ा तरु जाई, ताहि एक छन मुरछा आई।

उठि बहोरि कीन्हेसि बहु माया, जीति न जाइ प्रभंजन जाया।"

हनुमान जी ने तीसरा मुष्टि-प्रहार रावणानुज कुम्भकर्ण पर किया। कुम्भकर्ण जैसे बलशाली जिसे पर्वत एवं चट्टानों की मार रुई के फाहे जैसी नि:स्सार लगती है को जब हनुमान जी द्वारा मुष्टि-प्रहार किया तो भूधर स्वरूप कुम्भकर्ण भी इस प्रहार से तिलमिला उठा। कुम्भकर्ण भूतल पर गिर पड़ा, जब वह उठा तो मुष्टि-प्रहार से तुरंत पुनः भूतलगामी हो गया-

"तव मारुतसुत मुठिका हन्यो, परयो धरनि ब्याकुल सिर धुन्यो।

पुनि उठी तेहि मारेऊ हनुमंता, घुर्मित भूतल परेऊ तुरंता।"



दशग्रीवस्यदर्पहा का चौथा विशिष्ट मुष्टि-प्रहार दशानन रावण पर था। पूर्व प्रहारों की अपेक्षा यह बज्र मुष्टि कुछ विशिष्ट थी। लंकिनी, घननाद तथा घटकर्ण को तो मुष्टि का प्रहार मात्र था पर लंकेश को बज्रमुष्टिका लगी। लंकेश को ऐसा लगा कि पर्वत एवं बिजली एक साथ उसके ऊपर गिर पड़े हैं। लंकेश इस प्रहार से मूर्छित हो गया-।मूर्च्छा के उपरांत दसानन हनुमानजी के बल की सराहना भी करता है।


मुठिका एक ताहि कपि मारा। परेऊ सैल जन बज्र प्रहारा।

मुरछा गे बहोरि सो जागा। कपि बल विपुल सराहन लागा।


इस प्रकार पवनात्मज चार अलग-अलग लंकावीरों को मुष्टि-प्रहार से भूतलगत करते हैं। पवनात्मज को यह सदैव भान है कि लंका के किस वीर पर कितनी युक्ति प्रयोग करनी है, किसको मात्र स्पर्श कराना है, किसी पर प्रहार करना है तो अन्य पर बज्राघात करना है। शक्ति का अतिशय प्रयोग हनुमान जी की संपूर्ण योजना में नहीं है। ऐसा नहीं है कि वह मुष्टि-प्रहार से इन लंकावीरो का वध नहीं कर सकते थे। वध तो मुष्टि-प्रहार से तय था परंतु यह विधि के विधान के विपरीत होता तथा शक्ति के संरक्षण के भी प्रतिकूल होता। इस प्रकार पवनात्मज शक्ति के आराधन, संरक्षण एवं प्रबंधन का मुष्टि-प्रहार के द्वारा अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। नवरात्रि में शक्ति की अधिष्ठात्री देवी एवं शक्ति के अधिष्ठान पवनात्मज से यही प्रार्थना है कि हम समस्त मानवों को शक्ति के सम्यक प्रबंधन की दिशा प्रदान करें।


नमः शिवाय अरजरिया

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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!