【 अफगानिस्तान में तालिबान जनित परिस्थितियों के संदर्भ में लोगों की बेहूदा बयानों की आमद से आम शहरी न केवल दुखी है बल्कि उसे लग रहा है कि जो काम सरकार को पढ़ने का अधिकार है खास तौर पर जब भारत की एकात्मता का प्रश्न हो तथा भारत की आंतरिक कानून व्यवस्था और शांति बनाए रखने तथा भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि का प्रश्न ऐसी स्थिति में किसी भी नागरिक को असंतुलित बेहूदा बयान बाजी का अधिकार नहीं होना चाहिए । ताकि भारत सरकार के आधिकारिक बयान के पूर्व किसी भी तरह के अनियंत्रित देश की छवि खराब करने वाली बयान बाजी करनी नहीं चाहिए । कल रात्रि प्रतिष्ठित चैनल के रिपोर्टर अनाधिकृत रूप से सवाल जबकि भारत सरकार और प्रधानमंत्री राष्ट्रहित में समुचित निर्णय देने के लिए बैठकों पर बैठक कर रहे हैं। एक निर्वाचित वयोवृद्ध सांसद शफीक उर रहमान, ने भी नकारात्मक बयान दिया और बाद में अपने बयान को वापस लिया। मौलाना सज्जाद नोमानी नेटो घर बैठे तालिबान को सलाम किया। कोई मौलाना रहमानी ने भी भड़काऊ एवं बेकाबू बयान दिए हैं। इसके अलावा दो राजनैतिक के नेताओं ने भी लगभग नकारात्मक बयान दिए। इस तरह के वातावरण प्रोत्साहित होकर स्वरा भास्कर पीछे कहां रहती हैं जबकि अधिकांश भारतीय नागरिक जिनमें संदीप दीक्षित तथा राजेश सिंघल मोहसिन रज़ा जैसे पॉलीटिशियंस ने ऐसी बयानबाजी पर आपत्ति व्यक्त की।】
अफगानिस्तान में अमेरिका की फौज वापसी से साबित हो गया है कि अमेरिका ने बहुत जल्दबाजी की है अफगानिस्तान को छोड़ने में। अमेरिका को अफगानिस्तान छोड़ने से पहले मित्र राष्ट्रों जैसे नाटो संधि में संबद्ध राष्ट्रों भारत सहित दक्षिण एशियाई राष्ट्रों से वार्ता अवश्य करनी थी। समय सीमा सुनिश्चित होने के बाद अमेरिका को अपने साजो सामान के साथ वापसी करनी थी ना कि हेलीकॉप्टर एयरक्राफ्ट और बंदूक इत्यादि छोड़कर। अगर अमेरिका ने यह तय ही कर लिया था कि उसे अफगानिस्तान में केवल उन्हें निशाना बनाना है जो कि 9/11 के जिम्मेदार हैं ... तो उन्हें ओसामा बिन लादेन की हत्या के उपरांत तुरंत ही अफगानिस्तान छोड़ देना था। जो गार्डन का यह फैसला चिंतन योग्य नहीं होकर चिंता के लायक है।
अफगान की आंतरिक स्थिति बेहद चिंताजनक है। जनता को वहां की परिस्थिति एवं संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित आतंकी तालिबान की गारंटी पर कोई भरोसा नहीं है। यह स्वभाविक है क्योंकि आज से 20 वर्ष पूर्व लोगों ने जो भोगा होगा उससे ऐसी परिस्थिति दृष्टिगोचर होना प्रभावित है ।
[ ] कहा जाता है कि आज उन महिलाओं ने प्रोटेस्ट किया जो अफगानिस्तान में रह गई हैं इसमें कोई शक नहीं कि महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए तालिबान की मंशा संदिग्ध है।
[ ] महिलाओं को काम करने की आजादी देने वाला तालिबान एक शर्त लगाता है की महिलाओं को वही कार्य करने की अनुमति होगी जो शरिया के अनुकूल हो ।
[ ] आपने कुछ ऐसे दृश्य देखे होंगे कि तालिबान इस तरह से महिलाओं के पोस्टरों पर काला रंग पोत रहे थे । इससे सिद्ध होता है कि महिलाओं के अधिकारों के लिए तालिबान कितने सजग हैं।
[ ] तालिबान का चिंतन एक संप्रदाय विशेष का चिंतन है और एक प्रसिद्ध पत्रकार मोदी जी और आम भारतीय जनता से कह रहे हैं कि हम भारतीय हिंदू मुस्लिम एकात्मता के खिलाफ वातावरण निर्माण कर रहे हैं। ग्राउंड रियलिटी कुछ और है जो एक पत्रकार के दृष्टिकोण से बिल्कुल मैच नहीं करती।
[ ] पत्रकार महोदय ने अपने वक्तव्य नुमा रिपोर्ट में यह पूछा है कि-"मोदी जी अथवा भारत सरकार तालिबान को अब आतंकवादी कहेगी या नहीं.. ?" एक पत्रकार का ऐसा चिंतन को परिभाषित करने में सक्षम है। जब अंतरराष्ट्रीय संवेदनशील परिस्थितियां हो तब बुद्धिमान पत्रकार को इस तरह के सवाल नहीं करने चाहिए जो उनके किसी अन्य प्रकार के नैरेटिव को विकसित करने की तथा उसे स्थापित करने की कोशिश के रूप में देखा जाए। ऐसे कुछ लोग और भी हैं जिन्होंने लगभग इसी तरह के बयान दिए हैं।
[ ] इस बीच 17-18 अगस्त 2021 को भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने स्पष्ट कर दिया है कि हम सिख और हिंदू अफगानियों को शरण देंगे साथ ही वे अपने अफगानी भाइयों बहनों को सहयोग करेंगे।
[ ] विगत दो दिवसों से जिन दृश्यों को हमने टेलीविजन के जरिए देखा उसमें महत्वपूर्ण दृश्य एक यह भी है कि दिल्ली में निवास करने वाले काबुली वाले आंसू बहा रहे हैं और अपने परिवार अपने वतन को याद कर रहे हैं मुझे भी वह गीत याद आ रहा है जो शायद आप भी गुनगुन आएंगे ए मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछड़े चमन तुझपे दिल कुर्बान।
[ ] इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अफगानिस्तान की स्थिति सामान्य होने की कल्पना कोई भी नहीं कर सकता। कम से कम मैं तो नहीं बावजूद इसके कि तालिबान प्रवक्ता भले ही कितना दावा करें कि वह सामान्य जनजीवन बाहर करने का वादा करते हैं विश्वास योग्य नहीं है। इस यूट्यूब वीडियो में एक पुराना वीडियो जो सोशल मीडिया पर ताजा वीडियो के रूप में बताया गया है प्रस्तुत कर रहा हूं वह भी इस उद्देश्य से की तालिबानी सोच को विश्व को समझने की जरूरत है।
हमें भारत सरकार पर और हमारे नेतृत्व पर कम से कम वर्तमान में विश्वास करना ही होगा और करना चाहिए ।
मित्रों इसी भाव भूमि पर प्रस्तुत इस वीडियो को एक पत्रकार ने यूट्यूब पर रिपोर्ट किया है और मेरा वह वीडियो यूट्यूब में हटा दिया है। मैं समझ सकता हूं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इस तरह से हस्तक्षेप किया जाता है।
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कँवल ताल में एक अकेला संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा, तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है , उसे दर्द क्या कौन सोचता !!